पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 6.pdf/१५१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११९
पत्र: एस० हॉलिकको

हैं, जो स्वशासित उपनिवेशों में स्वीकृत हो चुके हैं। फिर भी यदि वे सुझाव स्वीकार न किये जायें तो एक जाँच-आयोग नियुक्त किया जाये, ऐसी हमने माँग की है। यह चिरमान्य ब्रिटिश प्रथा रही है कि जब कभी कोई नया कदम उठाया गया है तब उसके पहले एक शाही आयोगकी नियुक्ति हुई है। इसका नवीनतम उदाहरण कदाचित् ब्रिटेनका परदेशी-अधिनियम (एलिअन्स ऐक्ट) है। कोई कदम उठाये जाने से पहले एक आयोगने विदेशियोंके विरुद्ध लगाये आरोपों, वर्तमान कानूनोंके पर्याप्त होने-न-होनेके प्रश्न और कौन-से नये कानून आवश्यक हैं, इन बातोंकी जाँच की। ट्रान्सवालमें ब्रिटिश भारतीयोंके बारेमें हमने एक इसी प्रकारके आयोगकी माँग की है। हमें विश्वास है कि उन अत्यन्त गम्भीर आरोपोंको ध्यान में रखते हुए, जिनका मैंने उल्लेख किया है, हम इसके अधिकारी हैं। इन तमाम वर्षों में हम रोटी माँगते रहे हैं; परन्तु इस अध्यादेश के रूप में हमें पत्थर मिले हैं। इसलिए हमारे पास यह आशा करनेके लिए हर कारण मौजूद हैं कि लॉर्ड महोदय उपर्युक्त अध्यादेशका समर्थन नहीं करेंगे।

टाइप किए हुए अंग्रेजी मसविदेकी फोटो-नकल (एस० एन० ४५१३) से।

१२९. पत्र: एस० हॉलिकको

[होटल सेसिल
लन्दन]
नवम्बर ८, १९०६

प्रिय श्री हॉलिक,

आपके पत्रके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद । मुझे खेद है कि कल आप बीमार थे। मैं लॉर्ड एलगिनके नामका प्रार्थनापत्र[१] इसके साथ भेज रहा हूँ। यदि आप सोचें कि कोई परिवर्तन आवश्यक है तो आप कर सकते हैं और मैं प्रार्थनापत्रको पुनः टाइप करा लूँगा। नहीं तो यही मूल प्रतिके रूप में घुमाई जा सकती है।

आपका हृदयसे,

संलग्न
श्री एस० हॉलिक
६२, लन्दन वॉल, ई० सी०

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ४५२६) से।

  1. यहाँ "लॉर्ड एलगिनके नाम लिखे प्रार्थनापत्रका मसविदा" (पृष्ठ ११२-१३) की ओर संकेत किया गया है। देखिए "पत्र: एस० हॉलिकको", (पृष्ठ १०७) भी।