दक्षिण आफ्रिकामें हुआ है। वे कहते हैं, "हम भारतकी अपेक्षा दक्षिण आफ्रिकाको अपना घर ज्यादा समझते हैं। हमारी मातृभाषा तक अंग्रेजी है, हमारे माता-पिताओंने बचपनसे हमें वही भाषा बोलना सिखाया है। हममें तीन ईसाई हैं, एक मुसलमान और एक हिन्दू।" क्या ये लोग वकील और डॉक्टर बन जानेके बाद दक्षिण आफ्रिका लौटनेपर ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेसे रोक दिये जायेंगे? या उन्हें नये अध्यादेशके अन्तर्गत दिये गये पास, जिन्हें सर हेनरी कॉटनने "छूटके टिकट" कहा है, ले जाने होंगे? यदि उपनिवेशोंमें ऐसे ही कानून चलाने हों, तो इसीमें बड़ी कृपा होगी कि ब्रिटिश भारतीयोंको इंग्लैंडमें उच्च शिक्षा लेनेकी अनुमति बिलकुल न दी जाये; क्योंकि इंग्लैंडमें बिताये गये अच्छे समयकी स्मृतिके कारण उपनिवेशमें नामके ब्रिटिश, किन्तु आचरणसे अब्रिटिश, लोगों द्वारा किये गये अपमानका दंश उन्हें और भी अधिक दुःख देगा।
टाइप किये हुए अंग्रेजी मसविदेकी फोटो-नकल (एस० एन० ४५११) से।
१२७. पत्र: सैम डिग्बीको
[होटल सेसिल
लन्दन]
नवम्बर ८, १९०६
सर मंचरजीने मुझे ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंके एक पक्ष-समर्थक मित्रके रूपमें आपका नाम दिया है।
मैं लॉर्ड एलगिनकी सेवामें भेजे गये कई आवेदनपत्रोंकी प्रतियाँ साथ भेज रहा हूँ। आप जानते होंगे कि उनसे, आज ३ बजे यह शिष्टमण्डल मिलेगा।
आपका विश्वस्त,
टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ४५२५) से।
- ↑ टाइम्स ऑफ इंडियाके एक जमानेके सहयोगी सम्पादक और रॉयल सोसाइटी ऑफ आर्ट्सके भारतीय विभागके मंत्री। अप्रतिज्ञापित भारतीय प्रशासन सेवाकी समस्याओंके सम्बन्धमें आप बड़ी दिलचस्पी लेते थे।