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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जहाँपर ऐसी महिलाएँ पैदा होती है वह देश क्यों न फले-फूले। इंग्लैंड राज्य करता है, सो अपने बलके बूतेपर नहीं, बल्कि इस प्रकारके स्त्री-पुरुषोंके पुण्यबलपर।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ९-९-१९०५

८१. स्वर्गीय कुमारी मैनिंग'

'इंडिया' के ताजा अंकसे हमें यह शोकजनक संवाद मिला है कि राष्ट्रीय भारतीय संघ (नेशनल इंडियन असोसिएशन) की कर्मठ मन्त्री कुमारी मैनिंगका देहान्त हो गया। उस श्रेष्ठ महिलाके त्याग- पूर्ण कार्यसे ही इस संघमें जीवन आया था। जो तरुण भारतीय अध्ययनके लिए इंग्लैंड जाते थे उनकी वे सच्ची मित्र थीं और उनके स्वागतके लिए उनका द्वार सदा खुला रहता था। वे उनको मार्ग प्रदर्शित करनेके लिए सदा तैयार रहती थीं। उनके यहाँ जो बैठकें होती थीं वे एक वार्षिक कार्यक्रममें परिणत हो गई थीं। वे बैठकें भारतीयों और आंग्ल-भारतीयोंको एक दूसरेके समीप लातीं और इस प्रकार दोनोंमें पारस्परिक सद्भाव बढ़ाया करतीं। कुमारी मैनिंगमें दिखावा बिलकुल नहीं था। 'इंडिया' ने लिखा है कि वे सार्वजनिक प्रतिष्ठा प्राप्तिकी कोशिशें करने की अपेक्षा पीछे रहना अधिक पसन्द करती थीं। उनकी मृत्युसे, अध्ययन तथा अन्य कार्योंके लिए वर्ष-प्रतिवर्ष अधिकाधिक संख्यामें इंग्लैंड जानेवाले तरुण भारतीयोंकी निश्चित हानि हुई है। इनके सम्बन्धमें अधिक जानकारीके लिए हमारे पाठक हमारी लन्दनकी चिट्ठी पढ़ें।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १६-९-१९०५




१. एलिजाबेथ एडेलेड मैनिंग, काउंटी अदालतके जज और विद्वान वकील जेम्स मैनिंगकी पुत्री थीं। वे फ्राबेल सोसाइटीकी मन्त्री और गर्टन कॉलेज, कैम्बिजके संस्थापकोंमें से थीं। वे १८७७ में राष्ट्रीय भारतीय संघकी अवैतनिक मन्त्री चुनी गई और १० अगस्त १९०५ तक, जब वे ७७ वर्षकी आयु पाफर मृत्युको प्राप्त हुई, उस पदपर बनी रहीं। वे इंडियन मैगजीन ऐंड रिव्यूका सम्पादन करती थीं और भारतके समस्त सामाजिक आन्दोलनोंमें भाग लेती थीं।

२. प्रतीत होता है गांधीजी जब इंग्लेंडमें कानूनके अध्ययनके लिए गये थे, तब उनके घर प्रायः आते- जाते थे। देखिए, आत्मकथा भाग १, अध्याय २२ ।