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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किसी-किसी खानमें कोड़ोंके बदले लकड़ीसे पीटा जाता है। उसकी चोटें इतनी तेज होती हैं कि उनके कारण मांस उभर आता है और चमड़ी फट जाती है। नोर्सडीपकी खानमें मैने- जर कुकके समयमें यदि कोई चीनी बरमेसे ३६ इंच गहरा छेद न कर पाता तो वह उसे सजाका हुक्म देता था। सजा देनेका उसका तरीका और भी क्रूर था। वह सख्त मजबूत लाठीसे काम लेनेकी आज्ञा देता था और उससे जाँघोंके पीछे जहाँ, बिलकुल ही सहन न हो ऐसे स्थलपर, चोट मारनेका हुक्म देता था; और खूनकी धार चल जानेपर भी प्रहारोंकी संख्या पूरी की जाती थी। कभी-कभी तो इतनी सख्त चोट लग जाती थी कि बेचारे चीनीको अस्पताल भेजना पड़ता था। इस दुष्ट कुककी जगह बादमें प्लेस नामका व्यक्ति नियुक्त किया गया। वह चोरोंमें शाह माना जाता था, इसलिए वह लाठीके बदले रबड़के टुकड़े काममें लेता था। कुछ समय बाद खानके अधिकारियोंने देखा कि प्रतिमास जो काम होना चाहिए वह नहीं हो रहा है, इसलिए प्लेसको अधिक सख्ती करनेका हुक्म दिया गया। प्लेसने ऐसा करनेसे इनकार कर दिया और उसे त्यागपत्र देना पड़ा। इसपर लोकसभामें चर्चा होनेसे अधिकारियोंने कोड़ोंके बदले और कोई सजा देनेका निर्देश किया। इसपर प्लेसने, जिसे चीनका अनुभव था, चीनका प्रचलित रिवाज दाखिल किया। वह अपराधी चीनीको बिलकुल नंगा कर देता। फिर उसको अहाते में खड़े झंडेके साथ उसीकी चोटीसे बंधवा देता और वहाँ, चाहे जितनी ठंड अथवा चाहे जैसी कड़ी धूप हो, दो-तीन घंटे तक खड़ा रखता। फिर वह दूसरे चीनियोंको यह आदेश देता कि वे अपराधीको दाँत दिखा-दिखा कर चिढ़ायें। दूसरा तरीका यह था कि अपराधीके बायें हाथमें एक पतली रस्सी बाँधी जाती। फिर उस रस्सीको कड़ेमें डालकर बेचारे मजदूरको इस प्रकार लटकाया जाता कि उसे केवल पैरोंकी अंगुलियोंके सिरोंके सहारे ही दो-तीन घंटे तक खड़ा रहना पड़ता था। कहीं-कहीं तो बेचारे मजदूरके हाथमें हथकड़ी डालकर जमीनसे दो फुट ऊँचे पाटसे बाँध दिया जाता था और इस तरह बिना हिले-डुले उसे दो-तीन घंटे तक रहना पड़ता था। इस प्रकारकी सजा तो ताड़से छूटकर भाड़में गिरनेके समान हुई। लोकसभामें बेतकी मारके बारेमें चर्चा हुई तो खानोंके निर्दयी अधिकारियोंने बेंत लगाना बन्द कर दिया, किन्तु संसदमें यह कहना भुला दिया गया कि उसके बदले अधिक पीड़ा पहुँचानेवाली सजा निश्चित की गई है।

इस बातको प्रकाशमें लाकर 'डेली एक्सप्रेस'के सम्पादक श्री पेकमानने सैकड़ों चीनियोंका मूक आशीर्वाद प्राप्त किया है। यदि वह सब सच हो और गलत माननेका कोई कारण नहीं है-तो खानके अधिकारी अपने सिरजनहारके सामने क्या जवाब दे सकेंगे? दक्षिण आफ्रिकाके गरीब मजदूरोंकी हायसे अगर वे बरबाद हो जायें तो क्या आश्चर्य? अंग्रेजोंने लड़ाई करके ट्रान्सवाल जीता, उसका प्रयोजन क्या यही था?

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ९-९-१९०५