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७८. सन्धिपत्र'

जापानने जो शर्ते घोषित की थीं उनमें से उसने दो शर्ते उदारतापूर्वक बहुत-कुछ छोड़ दी है। एक तो यह कि लड़ाईके खर्चके बदले में कुछ न लिया जाये; किन्तु रूसी कैदियोंके खर्च तथा आहतोंकी सेवा-शुश्रूषाके खर्च के बदले में रूस केवल १२,००,००० पौंड जापानको दे; और दूसरी यह कि सदेलियन द्वीपको दोनों पक्ष आधा-आधा बाँट लें। यद्यपि रूसी जनतामें इस सन्धिपत्रसे प्रसन्नताकी लहर दौड़ गई है, जापानमें बड़ा असन्तोष फैला है, और उसके कम होनेके कोई लक्षण नहीं दीख रहे हैं। सन्धिपत्र तैयार हो जानेपर बिना ढील-ढालके उनपर हस्ताक्षर करनेके उपरान्त दोनों पक्षोंके वकील अपने-अपने देश लौट जानेके लिए अधीर हो रहे हैं, ऐसा अन्तिम तारोंसे पता चलता है। जापानके राजदूत स्वदेश लौटनेपर अच्छे स्वागतकी जरा भी आशा नहीं करते, बल्कि उन्हें डर है कि जनता उनको क्रोधपूर्ण दृष्टिसे देखेगी।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ९-९-१९०५

७९. चीनी खान-मजदूरोंपर अत्याचार

श्री लिटिलटनसे एक संसद-सदस्यने उक्त विषयमें प्रश्न किया था। उसके उत्तरमें उन्होंने जांच करनेका तथा कोड़े लगाना बन्द करनेका वचन दिया। चीनियोंको किस प्रकार कोड़े लगाये जाते हैं, उसका वर्णन जोहानिसबर्गके 'डेली एक्सप्रेस' में दिया गया है। वह बहुत करुणाजनक है। उसमेंसे मुख्तसर हाल हम नीचे दे रहे हैं। लेखकने यह बताया है कि जो कुछ उसने लिखा है वह या तो स्वयं अपनी आँखोंसे देखा हुआ है या हजारों मनुष्योंको बेंत या कोड़े लगानेका हुक्म जिन व्यक्तियोंने दिया था, उनकी गवाहीपर आधारित है। इस वर्षके प्रारंभमें, जोहानिसबर्गकी एक खानमें औसतन बयालीस चीनियोंको प्रतिदिन कोड़े लगाये जाते थे। इसमें अपवाद रविवारका भी नहीं है। यह सब इस प्रकार होता है : ऐसे मजदूरके विरुद्ध पहले तो उसका सरदार शिकायत करता है, फिर उसको अहातेके मैनेजरके कार्यालयमें ले जाया जाता है। वे भाई साहब अपराधके अनुसार दस, पन्द्रह अथवा बीस बेंत मारनेका हुक्म देते हैं। फिर दो चीनी सिपाही उसको करीब पन्द्रह कदम दूर ले जाते हैं। सिपाहीका हुक्म होते ही कैदी फौरन रुक जाता है। वह अपनी पतलून आदि कपड़ा उतार देता है और औंधे मुँह जमीनपर लेट जाता है। एक सिपाही उस बेचारेके पैर दबा लेता है और दूसरा उसका सिर पकड़ लेता है। इसके बाद बेंत लगानेवाला आदमी तीन फुट लम्बे और तीन इंच मोटे हत्थेवाले डंडेसे, आदेशके अनुसार धीरे-धीरे अथवा जोरसे उसकी पीठपर प्रहार करता है। यदि इस बीच पीड़ा सहन न हो सकनेसे वह थोड़ा भी हिलता-डुलता है तो एक और आदमी उसे अपने पैरोंसे दबा लेता है और तब गिनती पूरी की जाती है।

१. इस सन्धिपत्रपर ५ सितम्बर १९०५ को पोर्टूस्माउथ (संयुक्त राज्य अमेरिका) में हस्ताक्षर किये गये ।