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काउंट टोंलस्टोंय

श्री डुबेके इस भाषणका गोरोंपर बड़ा अच्छा प्रभाव पड़ा और उन्होंन कहा कि यदि उन्हें अपने फार्ममें लोहारी या छापेखानेका काम शुरू करने में दिलचस्पी हो, तो वे उन्हें सहायता देंगे। ब्रिटिश संघके सदस्योंने उसी समय आपसमें ६० पौंड इकट्ठा करके श्री डुबेको दिये । माननीय श्री मार्शल कैम्बेलने भी इस समय भाषण दिया और उसमें नेटालके आदिवासी काफिरोंकी प्रशंसा की और कहा कि वे अच्छे और उपयोगी है। उनके प्रति विद्वेष रखना गलतफहमी और भूलसे भरा हुआ है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २-९-१९०५

७५. काउंट टॉलस्टॉय

ऐसा माना जाता है कि काउंट टॉलस्टॉयके समान धुरन्धर विद्वान, फिर भी फकीरी मनो- वृत्तिवाला, कोई दूसरा व्यक्ति पश्चिमके देशोंमें तो नहीं है। उनकी आयु आज प्रायः अस्सी वर्षकी हो चुकी है, फिर भी वे बहुत स्वस्थ, परिश्रमशील एवं विचक्षण हैं।

उनका जन्म रूसके एक उच्च कुलमें हुआ है। उनके माता-पिताके पास अपार धन था। वह उन्होंने विरासतमें पाया है। वे स्वयं रूसके एक उमराव हैं। अपनी जवानीमें उन्होंने रूसकी बहुत अच्छी सेवा की है। क्रीमियाकी लड़ाईमें वे बड़ी बहादुरीसे लड़े थे। उस समय वे अन्य उमरावोंकी तरह संसारके सभी प्रकारके भोगोंका भरपूर उपभोग करते थे वेश्याएँ रखते थे; शराब पीते थे, और तम्बाकू पीनेकी उन्हें बहुत बुरी लत थी। युद्धकालमें जब उन्होंने भारी रक्तपात देखा तब उनका मन दयासे भर गया। उनके विचार बदल गये और उन्होंने अपने धर्मका अध्ययन शुरू किया। बाइबिल पढ़ी। ईसा मसीहके जीवनका वृतान्त पढ़नेसे उनके मनपर बहुत बड़ा असर हुआ। रूसी भाषामें बाइबिलका अनुवाद था। उससे उनको सन्तोष न हुआ। इसलिए उन्होंने मूल भाषाका, अर्थात् हिब्रूका, मध्ययन किया और बाइबिलकी शोध जारी रखी। उनमें लिखनेकी महान शक्ति है, इस बातका पता भी उन्हें इन्हीं दिनों चला। उन्होंने लड़ाईसे होनेवाले अनर्थकारी परिणामपर बड़ी प्रभावशाली पुस्तक लिखी। सारे यूरोपमें उसकी ख्याति फैल गई। लोगोंकी नैतिकता सुधारनेके अभिप्रायसे कई उपन्यास लिखे। इनके मुकाबलेके ग्रन्थ यूरोपकी भाषाओंमें बहुत कम माने जाते है। इन सब पुस्तकोंमें उन्होंने इतने अधिक प्रगतिशील विचार प्रकट किये है कि उनके कारण रूसके पादरी टॉलस्टॉयसे बिगड़ खड़े हुए। उन्हें बिरादरीसे बाहर निकाल दिया गया। इन सब बातोंकी कुछ परवाह न करते हुए उन्होंने अपना प्रयत्न जारी रखा, और अपने विचारोंको फैलाना शुरू कर दिया। उनके लेखोंका प्रभाव खुद उनके मनपर भी बहुत पड़ा। उन्होंने अपनी सारी सम्पत्ति त्याग दी और गरीबी अपनायी। आज अनेक वर्षोंसे वे एक किसानकी तरह रहते हैं। अपने निजी परिश्रमसे जो पैदा करते हैं उसीसे अपनी गुजर-बसर करते हैं। सब व्यसन छोड़ दिये हैं, अपना खाना-पीना भी बहुत सादा रखा है, और मन, वचन अथवा कायासे ऐसा कोई काम नहीं करते जिससे किसी प्राणीको हानि पहुँचे । सदैव अच्छे कामोंमें और ईश्वरकी स्तुति करने में समय बिताते हैं। वे यह मानते हैं कि:

१.मनुष्यको दौलत इकट्ठी नहीं करनी चाहिए।

२.दूसरा आदमी चाहे कितना भी बुरा करे फिर भी हमें उसका भला करना चाहिए,

यह ईश्वरीय फरमान है; उसी प्रकार नियम भी है।