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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आपत्तिजनक कार्यवाहियाँ अपेक्षाकृत कम ही हुई हैं। यह निर्विवाद है कि युद्धसे पहले ट्रान्सवालमें १५,००० से ऊपर ब्रिटिश भारतीय वयस्क पुरुष रहते थे। आपकी पंजिकामें करीब १२,००० ही दिखाई पड़ते हैं। इसलिए यह मानना उचित होगा कि जिन व्यक्तियोंको अनुमतिपत्र मिले है, उनमें से अधिकतर युद्धसे पहलेके ट्रान्सवाल-निवासी हैं।

मेरा संघ सादर विश्वास करता है कि यह नियम वापस ले लिया जायेगा, और जो शरणार्थी वापस जानेकी अनुमतिकी प्रतीक्षा कर रहे हैं, उनकी अजियाँ जल्द मंजूर कर दी जायेंगी; क्योंकि, मेरे संघके पास जो जानकारी है, उसके अनुसार उन्हें बहुत बड़ी असुविधा और हानि हो रही है।

आपका, आदि,

अब्दुल गनी

अध्यक्ष

ब्रिटिश भारतीय संघ

[अंग्रेजीसे]

प्रिटोरिया आर्काइव्ज़ एल० जी० ९२/२१३२

७४. नेटालके काफिर

विलायतसे ब्रिटिश संघके कुछ सदस्य आजकल दक्षिण आफ्रिका आये हुए हैं। वे सबके- सब विद्वान हैं और उन्होंने ज्ञान अर्जित किया है। दक्षिण आफ्रिकामें यह संयोग पहली ही बार आया है। कुछ दिन पहले ये लोग नेटालमें थे। तब माननीय मार्शल कैम्बेल उनको अपनी माउंट एजकम्बकी कोठीपर ले गये थे। वहाँ उन सदस्योंको दो प्रकारके अनुभव कराये। एक तो आदिवासी काफिर कैसे होते हैं, यह बताया और उनके नाच आदिका प्रदर्शन कराया। उसके बाद शिक्षित आदिवासी काफिरोंसे परिचय कराया। उन लोगोंके वरिष्ठ श्री डुबे नामके व्यक्ति हैं। उन्होंने सदस्योंके समक्ष बड़ा प्रभावशाली भाषण किया।

श्री डुबे जानने योग्य वतनी है। इन्होंने फीनिक्सके पास अपने परिश्रमसे तीन सौ एकड़से अधिक जमीन ली है। वहींपर ये अपने भाइयोंको स्वयं पढ़ाते हैं। ये उन्हें विविध प्रकारके उद्योग सिखाते हैं और दुनियाके संघर्षसे मोर्चा लेनेके लिए उनको तैयार करते हैं।

श्री डुवेने अपने शानदार भाषणमें बताया कि काफिरोंके प्रति जो तिरस्कारका भाव रखा जाता है वह अनुचित है। आदिवासी काफिरोंकी तुलनामें शिक्षित काफिर अधिक अच्छे हैं, क्योंकि वे लोग अधिक काम करते हैं और उनका रहन-सहन ऊँचे ढंगका होनेके कारण व्यापारियोंमें उनकी साख अधिक है। आदिवासी काफिरोंपर करका बोझ लादना अन्याय है। और ऐसा करना उसी डालको काटनेके बराबर है जिसपर हम खुद बैठे हों। गोरोंके मुकाबले आदिवासी काफिर अपना कर्तव्य अधिक अच्छी तरह समझते हैं और उसका पालन करते हैं। वे परिश्रम करते हैं, और उनके बिना गोरे एक घड़ी भी नहीं टिक पायेंगे। वे सदैव वफादार रहनेवाली प्रजा हैं और नेटाल उनकी जन्मभूमि है। दक्षिण आफ्रिकाके सिवाय उनका कोई दूसरा देश नहीं है, और उनसे जमीन आदिके अधिकार छीनना उन्हें घरसे बाहर करने के समान है।

१.देखिए, "बिटिश सघ : एक सुझाव", पृष्ठ ४९ ।