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क्या भारत जागेगा?

कम्पनी है जो, अगर इमारत अच्छी और उपयुक्त हो तो, मेरा खयाल है ७ पौंड ६ शिलिंगके हिसाबसे, ऐसे मालका बीमा कर सकती है। अगर कोई अपने मालका बीमा करानेके इच्छुक हों तो मेहरबानी करके मुझे खबर कीजिये।

आपका सच्चा,

मो०क० गांधी

[अंग्रेजीसे]

पत्र-पुस्तिका (१९०५), संख्या ९८१

६३. क्या भारत जागेगा?

कर्जन साहब बंगालके दो भाग करके एक भाग असम में जोड़ देनेकी कोशिशें काफी अरसेसे कर रहे हैं। वे इसका कारण यह बताते हैं कि बंगाल इतना बड़ा प्रान्त है कि उसका सारा काम-काज एक गवर्नर नहीं देख सकता । असम एक छोटा-सा प्रान्त है, उसकी जनसंख्या बहुत कम है, लेकिन यह बंगालसे लगा हुआ है। इसलिए माननीय गवर्नर जनरलका इरादा है कि बंगालका कुछ हिस्सा असममें मिला दिया जाये। बंगाली लोग कहते हैं कि बंगाली और असमी दोनों बिलकुल अलग-अलग हैं। बंगाली अत्यन्त शिक्षित हैं। वे एक जमानेसे एक साथ रहते आये हैं। उनको विभक्त करके उनका बल तोड़ देना और उनमें से बहुतोंको असमके साथ मिला देना, यह बड़े अन्यायकी बात है। इस बारेमें बहुत चर्चा हो चुकी है। कुछ दिन पहले श्री बॉड्रिकने बताया था कि उनको कर्जन साहबका विचार पसन्द आया है। यह समाचार जबसे भारत पहुँचा है तबसे बंगालमें गाँव-गाँव सभाएं की जा रही हैं। उनमें सभी लोगोंने भाग लिया है। सुना है, चीनी व्यापारी भी इनमें शरीक हुए हैं। ये सभाएँ इतनी विशाल हुई बताई जाती हैं कि इनके बारे में तार ठेठ दक्षिण आफ्रिका तक पहुंचे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि इन सभाओंमें प्रथम बार ही ऐसे प्रस्ताव प्रस्तुत किये गये है कि सरकार घबड़ा जायेगी। मालूम होता है, भाषणों में यह कहा गया है कि यदि सरकार न्याय न करे तो भारतके व्यापारी विलायतके साथ बिलकुल व्यापार न करें। यह बात हम लोगोंने चीनसे सीखी, यह हमें स्वीकार करना चाहिए। किन्तु यदि सचमुच ही इसके अनुसार अमल कर दिखाया जाये तो हमारे कष्टोंका अन्त शीघ्र हो जायेगा और इसमें कोई आश्चर्यकी बात न होगी। क्योंकि यदि ऐसा हुआ तो विलायतको बड़ा नुकसान पहुँचेगा। इसके खिलाफ सरकारको कोई उपाय भी न मिलेगा। लोगोंसे व्यापार करनेकी जबरदस्ती नहीं की जा सकती। यह उपाय बहुत सीधा और सरल है। लेकिन क्या हमारे लोग बंगाल में इतना ऐक्य बनाये रखेंगे? देशके हितके लिए व्यापारी लोग हानि सहन करेंगे? यदि हम इन दोनों प्रश्नोंके उत्तरमें हाँ कह सके तो मानना होगा कि भारत सचमुच जाग गया है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १९-८-१९०५