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५५. कदम-ब-कदम

रैड अग्रगामी संघ (रैड पायोनियर्स) को धन्यवाद है कि उसकी कार्रवाईके फलस्वरूप जोहानिसबर्गकी गिरजा-परिषद (चर्च कौन्सिल) अपने कर्तव्यके प्रति जागरूक हो गई है। परिषदके प्रतिनिधियोंका एक शिष्टमण्डल, ट्रान्सवालमें भूमिपर वतनी लोगोंके अधिकारके सम्बन्धों लॉर्ड सेल्बोर्नसे यह अनुरोध करने के लिए मिला था कि वतनियोंको जो अधिकार युद्धसे पहले प्राप्त थे उनको अक्षुण्ण रखना वांछनीय है। ट्रान्सवालके महान्यायवादी यह बता चुके हैं कि ट्रान्सवालमें किस प्रकार युद्धसे पहले वतनी लोग स्वतन्त्रतापूर्वक जमीनके मालिक हो सकते थे। उन्होंने उनके सामने एक उदाहरण भी रखा था कि जब कुछ लोगोंने जमीनके बारेमें वतनियोंके अधिकारों में कमी करनेके लिए प्रार्थनापत्र दिया तब अध्यक्ष क्रूगरने उनको सूचित किया था कि वे उनकी प्रार्थना स्वीकार नहीं कर सकते। यद्यपि यह ठीक है कि व्यवहारतः वतनी लोगोंको अपनी जमीनोंका पंजीकरण स्वयं अपने नाम करानेकी इजाजत न थी, परन्तु, महान्यायवादीने स्पष्ट बताया है कि, उनकी जमीनें वतनी मामलोंके आयुक्तके नाम पंजीकृत होनेपर भी, उक्त अधिकारीको उनके सम्बन्धमें निजी विवेकके प्रयोगका अधिकार नहीं मिल जाता था। वह जमीनको उक्त वतनीके न्यासीकी हैसियतसे ही अपने नाम लिखा सकता था और जमीनके असली मालिकके निर्देशसे उसके स्थानमें किसी दूसरे वतनीका नाम लिखाने के लिए बाध्य था, ताकि वह दूसरा वतनी न्यासके लाभका अधिकारी हो जाये। सर जॉर्ज फेरारके नेतृत्वमें वतनी- विरोधी लोगोंके शोरगुल मचानेपर, सर रिचर्ड सॉलोमनने अपनी इच्छाके बहुत-कुछ विरुद्ध यह वचन दे दिया है कि वे वतनियोंकी जमीनोंका पंजीयन वतनी मामलोंके आयुक्तके नाम करनेके रिवाजको कानूनका रूप देनेके लिए एक विधेयक पेश करेंगे। रैड अग्रगामी संघने इसके विरुद्ध फिर आन्दोलन शुरू कर दिया है। उनकी जिद है कि वतनी मामलोंके आयुक्तको उनका न्यासी बननेसे इनकार करनेका अधिकार होना चाहिए। यदि उनकी यह प्रार्थना स्वीकृत हो गई तो वतनियोंको युद्धसे पहले जमीनका मालिक होनेका जो अधिकार था, वह निश्चय ही छिन जायेगा।

गिरजा-परिषदने इसी प्रकारके आन्दोलनके विरुद्ध अपनी आवाज उठाई है। श्री हॉस्केनके नेतृत्वमें उसके शिष्टमण्डलने लॉर्ड सेल्बोर्नके सामने यह स्पष्ट कर दिया है कि जबसे ट्रान्सवालपर ब्रिटिश अधिकार हुआ है तबसे रंगदार लोगोंके साथ जो व्यवहार हो रहा है वह पहलेको अपेक्षा ज्यादा बुरा है। उन्होंने और उनके साथी सदस्योंने यह भी कहा कि बहुत-से लोग युद्धको इसलिए ठीक समझते थे कि उनकी सम्मतिमें यह स्वतन्त्रताका युद्ध था। पादरी श्री फिलिप्सने कहा कि वे अपनी गाँठसे धन व्यय करके धर्म-युद्धके पक्षमें प्रचार करने इंग्लैंड गये थे, क्योंकि बोअर शासनमें रंगदार लोगोंपर जो ज्यादतियां की जा रही थीं उन्हें वे सहन नहीं कर सके थे। परन्तु पादरी साहबने अब अनुभव किया है कि इन जातियोंकी हालत ब्रिटिश शासनमें तनिक भी नहीं सुधरी है।

लॉर्ड सेल्बोर्नने उत्तर वही दिया जिसकी आशा की जाती थी। उन्होंने इस प्रश्नका अध्ययन पर्याप्त रूपसे नहीं किया था। इसलिए वे कोई मत प्रकट नहीं कर सके । परन्तु परमश्रेष्ठने कहा :

यदि ब्रिटिश शासनमें सभ्य अथवा असभ्य वतनियोंके साथ किसी प्रकारका अन्याय होता है तो यह हमारे शासनपर कलंक और धब्बा है और ऐसा विषय है जिसके बारेमें में व्यक्तिगतरूपमें अनुभव करता हूँ कि यह अपयशकी बात है।

१. स्टीफेनस जोहानिस पोलस क्रूगर, (१८२५-१९०४), बोअर नेता, ट्रान्सवालके राज्याध्यक्ष १८८३-२९०० ।

२. ट्रान्सवाल विधान परिषदके नामजद सदस्य ।