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४६. पत्र: कुमारी बिसिक्सको'

[जोहानिसबर्ग]

अगस्त ५,१९०५

प्रिय कुमारी बिसिक्स,

मुझे आपकी परेशानियोंके लिए बहुत अफसोस है । मुझे लगता है कि आपने जिन चीजोंका उल्लेख किया है वे वापस नहीं ली जा सकेंगी, क्योंकि न्यासीसे मुझे मालूम हुआ है कि वे बिक्री में शामिल कर ली गई हैं। चालू धन्धेके रूपमें विक्रीसे केवल २१० पौंड वसूल हुए हैं। मुझे पता चला है कि कारोबार ब्राउन बन्धुओंने खरीदा है।

मैंने भगिनी हीलिएलसे कहा था कि शायद मैं सोमवारको आपके पास साइकिलसे चला आऊँ; किन्तु मुझे दुःख है कि मैं नहीं आ सकूँगा।

आपका सच्चा,

मो० क० गांधी

कुमारी बिसिक्स
मारफत बॉक्स ४२०७
[अंग्रेजीसे]

पत्र-पुस्तिका (१९०५), संख्या ८७२

४७. पत्र: उमर हाजी आमदको

[जोहानिसबर्ग]

अगस्त ५,१९०५

श्री सेठ उमर हाजी आमद,

आपका पत्र मिला। मैरित्सबर्गमें विज्ञापन इकट्ठे किये, यह जानकर खुशी हुई। आप फीनिक्स गये होंगे। नियमित रूपसे जाते रहिए। नींदमें खलल न पहुँचे, ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए।

मो० क० गांधीके सलाम

left|श्री उमर हाजी आमद}}

बॉक्स [४४१]
डबंन

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें गुजरातीसे; पत्र-पुस्तिका (१९०५),संख्या ८७४

१. कुमारी एडा बिसिक्स एक उयोगी थियोसॉफिस्ट थीं। उन्होंने एक छोटा निरामिष उपाहार-गृह खोला और बादमें उसका विस्तार करनेका निर्णय किया । वह सहायताके लिए गांधीजीके पास आई। उन्होंने अपने एक मुवक्किलके एक हजार पौंड उसकी मंजूरीसे कुमारी विसिक्सको दे दिये; परन्तु वे उन्हें फभी वापस नहीं मिले । उसकी क्षतिपूर्ति उन्होंने स्वयं की । देखिए आत्मकथा भाग ४, अध्याय ६ ।