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पत्र: दादा उस्मानको

लोगोंपर लगाया गया है, जिनकी सेवाएँ, जैसा कि दिखाया जा चुका है, उपनिवेशकी भलाईके लिए अनिवार्य मानी गई हैं।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ५-८-१९०५

४४. जापान कैसे जीता?

न्यू यॉर्कमें संवाददाताओंने बैरन कोमुरासे प्रश्न किया कि जापानकी जीतके कारण क्या है ? बैरन कोमुराने जो उत्तर दिया वह सदाके लिए मनमें अंकित कर लेने योग्य है। उन्होंने कहा कि जापानकी माँग न्यायोचित है, यह एक कारण है। दूसरा कारण यह है कि जापानमें ऐक्य है। अधिकारियों और लोगों में भ्रष्टाचार नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति अपना-अपना कर्तव्य पूरा करता है। जापानी आलसी अथवा काहिल नहीं हैं और अत्यन्त सादगीसे रहते हैं। जापानी सादगीसे रहने के कारण रूसियोंसे टक्कर ले सके हैं। थोड़े कपड़े और आहारमें थोड़ी चीजोंकी आवश्यकता इत्यादि कारणोंसे जापानी सैनिकोंकी खाद्य सामग्री आदि कम गाड़ियोंमें ढोई जा सकती हैं। परिणामस्वरूप जापानियोंको बहुतसे सैनिकोंको दूर तक ले जानेमें कम असुविधा रहती है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ५-८-१९०५

४५. पत्र: दादा उस्मानको

[जोहानिसबर्ग]

अगस्त ५,१९०५

श्री दादा उस्मान,

पत्र मिला । श्री वाइलीको हकीकत भेजी है। उसकी नकल आपको भी भेजता हूँ। आपके परवाने के बारेमें आपका चेक मिलनेके बाद मैंने आजतक कोई फीस नामे नहीं लिखी है। मुझे लिखनी चाहिए कि नहीं, जवाब लिखें।

विज्ञापन इकठे किये, यह ठीक किया। चेक लिये या नहीं?

दफ्तरसे श्री लैबिस्टरका मशविरा वगैरह कागजात भेजें।

मो० क० गांधीके सलाम

श्री दादा उस्मान
बॉक्स ८८
डर्बन

गांधीजीके स्वाक्षरों में गुजरातीसे; पत्र-पुस्तिका (१९०५), संख्या ८७१