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४३. नेटालके गिरमिटिया भारतीय

श्री जेम्स ए० पॉलकिंगहॉर्नने गत ३१ दिसम्बरको समाप्त होनेवाला अपना वार्षिक विवरण प्रकाशित किया है। जैसा कि एक सहयोगी लिखता है, यह विवरण देरसे प्रकाशित हुआ है। नेटालमें अधिकांश सरकारी विवरण इसी तरह प्रकाशित होते हैं। इसमें सन्देह नहीं कि इसके परिणामस्वरूप उनमें वह दिलचस्पी नहीं ली जाती जो उनके तात्कालिक प्रकाशनपर ली जाती। वर्तमान विवरण फिरसे गिरमिटकी शर्त लगानेपर और व्यक्ति-करके बारेमें प्रवासी अधिनियमके अमलपर यथेष्ट प्रकाश डालता है। अत: वह साधारणसे अधिक दिलचस्पीकी चीज है। भारतीय गिरमिटिया आबादीकी अबतक दी गई संख्याकी अपेक्षा यह अधिक सही संख्या भी देता है। संरक्षक द्वारा दी गई जानकारी 'आँखे खोलनेवाली' है। गत तीन वर्षों में भारतीय आबादी बहुत काफी बढ़ी है। १८७६ से १८९६ के बीचमें यह ३१,७१२ थी, १९०२ में यह, ७८,००४ थी और १९०४ के अन्त में यह ८७,९८० हो गई। इस तरह दो वर्षमें लगभग १०,००० की वृद्धि हुई। और तो भी संरक्षकका अन्यत्र कहना है कि १९०२ में १९,००० गिरमिटियोंके लिए प्रार्थनापत्र दिये गये हैं। वे इस माँगकी पूर्ति नहीं कर सके हैं। इस प्रकारके मजदूरोंकी मांग इतनी बड़ी है कि नये प्रार्थनापत्रोंको सर्वथा अस्वीकार कर देना आवश्यक हो गया है। इस बड़ो वृद्धिका कारण स्पष्ट है। इस श्रेणीके मजदूर बहुत लोकप्रिय है और उपनिवेशमें उनकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। जो लोग आते हैं वे बड़ा संतोष प्रदान करते हैं और हजारों उपनिवेशियोंकी सुखद जीविका भारतसे गिरमिटिया मजदूरोंके सतत प्रवाहपर बहुत अंशोंमें निर्भर करती है। इससे जो निष्कर्ष निकलता है वह भी स्पष्ट है। भारतीयोंके अवांछनीय नागरिक होनेके बारे में यहाँ जो हल्ला है वह अधिकांश रूपसे झूठा अथवा स्वार्थभरा है। ऊपर दिये गये आँकड़ोंसे जो निष्कर्ष निकलता है उसका आश्चर्यजनक समर्थन हमें परमश्रेष्ठ नेटालके गवर्नरके हाल ही के भाषण में मिलता है। कृषि प्रदर्शनीके उद्घाटनके समय उन्होंने कहा था कि नेटालकी तटीय भूमिके विकासके लिए भारतीय कृषक अनिवार्य है।

संरक्षक महोदय व्यक्ति-कर और फिरसे गिरमिटमें प्रवेश-संबंधी कानूनके अमलसे बहुत अधिक असन्तुष्ट हैं। वे कहते है कि इस कानूनसे लोग बहुत अधिक बच निकलते हैं और जिन भारतीयों की गिरमिटकी अवधि समाप्त हो जाती है उनको भारत वापस भेजनेमें यह कानून असफल रहा है। जो लोग यहाँ रह गये है उनमें से बहुतेरे व्यक्ति-करसे बचने में सफल हो गये हैं। गत वर्ष ८८८ पुरुषों और ३४५ स्त्रियोंने नये कानूनके अधीन गिरमिटकी अवधि समाप्त की। इस संख्यामें से केवल १३७ पुरुषों और ३२ स्त्रियोंने पुन: गिरमिटमें आनेकी अर्जी दी। २०१ पुरुष और ५८ स्त्रियाँ भारत लौट गये। ३७५ पुरुषों और १४६ स्त्रियोंने कर चुकाया और यह लेखा तैयार करते समय १७० पुरुषों और १०५ स्त्रियोंके बारेमें कुछ स्थिर नहीं किया जा सका। इसपर आश्चर्य करने की बात नहीं है। व्यक्ति-कर राजस्व बढ़ानेका कोई सन्तोषजनक तरीका नहीं है। उपनिवेशमें बसनेमें इसके कारण रुकावट नहीं आई। अधिनियम बनानेवालोंने किसी ऐसे परिणामकी आशंका नहीं की थी। गिरमिटिया भारतीयोंको इससे खीज उत्पन्न होती है। यह उनसे अनुचित ढंगसे धन वसूल करने का जरिया है और नेटालके सुन्दर नामपर एक धब्बा लगाता है। और इससे भी अधिक दुःखकी बात यह है कि यह कर उन