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४१. ट्रान्सवालमें अनुमतिपत्र

हम 'गवर्नमेंट गजट 'से लेकर यह छाप चुके हैं कि ट्रान्सवालमें कुछ अनुमतिपत्र रद कर दिये गये हैं। कुछ लोगोंने इसका अर्थ यह लगाया है कि बताई हुई संख्याओंके सच्चे अनुमतिपत्रोंके मालिकोंको भी भागना पड़ेगा और उनके अनुमतिपत्र अवैध हो गये हैं। यह विचार भ्रान्तिपूर्ण है। जिनके अनुमतिपत्र वैध हैं और जिनके अंगूठेके निशान उनपर लगे हुए हैं उनको बिलकुल नहीं घबराना चाहिए। 'गजट में नाम प्रकाशित होनेपर भी उनके अनुमतिपत्र रद नहीं होते हैं। यही बात रजिस्टरोंपर भी लागू होती है।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २९-७-१९०५

४२. बाल्टिकके बेड़ेका रहस्य

बाल्टिक बेड़ेकी हारकी पूरी कहानीपर प्रकाश डालनेवाला रोज़दीस्तवेन्स्कीका' जारके नाम प्रेषित पत्र सचमुच दयाजनक । यद्यपि वह पत्र एक हारे हुए सेनापतिने लिखा है, फिर भी कोई यह न मानेगा कि उसमें बताये गये कारण उन्होंने अपनी हारके स्पष्टीकरणके लिए बहानेके रूपमें पेश किये हैं। जो गुप्त तथ्य अब प्रकट हुए हैं उनसे यह स्पष्टतः सिद्ध हो जाता है कि इस बेड़ेकी जो भीषण पराजय हुई वह अवश्यम्भावी थी। संसारके चतुरसे-चतुर सामुद्रिक युद्ध-विशारद कहते थे कि यह बेड़ा जापानियोंकी पूरी-पूरी खबर लेगा। ऐसा अनुमान लोग इसलिए लगाते थे कि इस बेड़ेके युद्धपोत अतिविशाल, शस्त्रास्त्रोंसे बहुत अच्छी तरह सज्जित और तेजीसे चलनेवाले थे। उनमें नयेसे-नये ढंगकी बढ़िया तोपें लगी थीं और उनके सेनापति बड़े दक्ष माने जाते थे। लेकिन जैसा कि जल सेनाध्यक्ष रोज़दीस्तवेन्स्कीने लिखा है, उस बेड़ेकी ऐसी महत्ता केवल कागजी ही थी। उन्होंने जारको पत्रमें लिखा है कि शासन व्यवस्थाकी खराबीके कारण युद्ध-पोतोंका निर्माण लज्जाजनक ढंगसे किया गया था। यही नहीं, उनमें हथियार और बख्तर आदि लगानेको भी बड़ी कमियाँ थीं। तोपें ठीक तरह गोले नहीं फेंक पाती थीं, कोयलाघरमें पूरा कोयला नहीं भरा जा सकता था। उनकी तेज चालका वर्णन झूठा किया गया था, उनके एंजिन सदा ऐसी आवाज करते रहते थे मानो उनका सारा ढांचा ढीला हो गया हो, दो-तिहाई नाविक निकम्मे थे, तोपचियोंको अपने कर्तव्योंका पता नहीं था और सबसे खराब बात तो यह थी कि माडागास्करसे आगे चलकर सब लोग विद्रोही हो गये थे। इस प्रकारका बेड़ा युद्ध करे तो परिणाम उसकी हारके सिवाय अन्य कुछ नहीं हो सकता। फार्मोसा छोड़नेके बाद क्या-क्या हुआ इसका यथार्थ वर्णन उस पत्रमें दिया गया है। वह अपने बेड़ेकी इस स्थितिको पहलेसे ही जानता था और ऐसी स्थितिमें उसने युद्धका उत्तरदायित्व अपने ऊपर लेकर जो बहादुरी बताई उससे उसकी राज्यभक्ति ही प्रकट होती है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २९-७-१९०५

१. इनकी सूची ८ और १५ जुलाई, १९०५ के इंडियन ओपिनियनमें दी गई थी।

२. बाल्टिक नौसेनाध्यक्ष रिअर एडमिरल रोजदीस्तवेन्स्की।