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ट्रान्सवाल आनेवाले भारतीयोंको महत्वपूर्ण सूचना

था। एक बार उसे पुलिस पकड़नेके लिए आई। तब उसने स्वयं दरबानका वेश बनाकर दरवाजा खोला और इस प्रकार पुलिसको चकमा दिया।

यह महान पुरुष सन १८७३ के मार्च महीनेमें चल बसा। इस समय उसके शत्रु भी मित्र हो गये थे। लोग उसकी सच्ची खूबियोंको पहचान गये थे। उसकी अर्थीके साथ अस्सी हजार लोग गये थे। जेनोआमें वह सबसे ऊँची जगहपर दफन किया गया। इटली और यूरोपके शष देश आज इस पुरुषकी पूजा करते हैं । इटलीके महापुरुषोंमें उसकी गिनती है। वह सदा स्वार्थ-रहित, अहंकार-रहित, अत्यन्त पवित्र और धर्मनिष्ठ पुरुष रहा। गरीबी उसका आभूषण थी। वह पराये दुःखको अपना दुःख मानता था। संसारमें ऐसे उदाहरण विरले ही दीख पड़ते हैं जहाँ एक ही मनुष्यने अपने मनोबलसे और अपनी उत्कट भक्तिसे, अपने देशका अपने जीवन- कालमें उद्धार किया हो। ऐसा पुरुष तो मैज़िनीकी माँने ही उत्पन्न किया था।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २२-७-१९०५

३८. ट्रान्सवाल आनेवाले भारतीयोंको महत्त्वपूर्ण सूचना'

ट्रान्सवालमें आजकल अनुमतिपत्रोंके बारेमें भारतीयोंपर सख्ती की जा रही है। बहुत लोग, जो जाली अनुमतिपत्रोंके बलपर यहाँ ठहरे हुए थे, निर्वासित कर दिये गये हैं। अनुमतिपत्रोंपर जिनके अंगूठेके निशान नहीं थे ऐसे कुछ लोगोंको छः-छ: सप्ताहकी कैदकी सजा दी गई है। अभी कुछ अन्य लोगोंको परेशानी होनेकी सम्भावना है। यह भी खयाल है कि अनुमतिपत्र- अधिकारी विभिन्न गाँवोंमें जाँच करनेके लिए जायेंगे। इसलिए जिनके पास जाली अनुमतिपत्र हों उनका तुरन्त ट्रान्सवाल छोड़कर चले जाना जरूरी है। जाली अनुमतिपत्रका उपयोग बिलकुल न किया जाये, नहीं तो जेल भुगतनेकी नौबत आयेगी।

आजतक १६ वर्षसे कम आयुके लड़कों और औरतोंको अनुमतिपत्रोंके बिना जाने देते थे; लेकिन अनुमतिपत्रोंकी जांच शुरू होनेके बाद सीमापर बहुत सख्ती की जा रही है। अब १६ वर्षसे कम आयुका लड़का अपने पिताके साथ न हो अथवा स्त्री अपने पतिके साथ न हो तो उसको अनुमतिपत्र न होनेपर रोक लिया जाता है। एक स्त्री अपने पतिके बिना ट्रान्स- वाल जा रही थी। वह फीक्सरस्टमें उतार दी गई। इससे ट्रान्सवालमें भारतीयोंको नीचे लिखी बातें ध्यानमें रखनी चाहिए।

(१) जाली अनुमतिपत्र लेकर यहाँ प्रवेश न करें।

(२) स्त्रियाँ अनुमतिपत्र न होनेपर अपने पतिके बिना प्रवेश न करें।

(३) १६ वर्ष से कम आयुके लड़के भी अपने पिताके साथ ही अनुमतिपत्रके बिना प्रविष्ट हो सकते हैं।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २२-७-१९०५

२. यह हमारे जोहानिसबर्ग संवाददाता द्वारा प्रेषित," रूपमें प्रकाशित हुआ था ।