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३५. क्रूर्सडॉर्पके भारतीय

क्रूगर्सडॉर्पमें भारतीयोंके बारेमें सभा' हो जानेपर नगरपरिषदके नाम वहाँके डॉक्टरकी रिपोर्ट आई है। उन्होंने उसमें लिखा है कि भारतीयोंके मकान अधिकतर गन्दे पाये जाते हैं, वे चाहे जहाँ थूक देते हैं, उनके पाखाने बड़े गन्दे होते हैं, पाखानोंकी जमीनपर पानी भरा रहता है जो बिलकुल नहीं सूखता है, वे दूकानपर ही बैठते और सोते हैं, इत्यादि। हम जानते हैं कि इसका बहुत-सा हिस्सा झूठ है और क्रूगर्सडॉर्प के भारतीयोंका कर्तव्य है कि वे इसके खिलाफ रिपोर्ट प्राप्त करें। फिर भी हमें ऊपरके आक्षेप एक हद तक स्वीकार करने पड़ेंगे। इस बातसे कोई इनकार नहीं कर सकता कि हम लोग चाहे जहाँ थूक देते हैं और अपने पाखाने गन्दे रखते हैं। हम लोग पाखानोंकी सफाईकी ओरसे आम तौरपर उदासीन रहते हैं। हम यह अनुभव करते है कि हमें उदासीनता छोड़ देनी चाहिए। पाखानों में से अनेक रोग लगते हैं, यह बात साबित हो सकती है। पाखाने साफ रखना बहुत आसान बात है। पाखानेके बाद हर बार बाल्टी में सूखी मिट्टी या राख डाली जाये और तख्तोंको हमेशा जन्तुनाशक पानीसे धोकर साफ किया जाये। यदि हमेशा ऐसा किया जाये तो इसमें समय खर्च नहीं होता और बहुत घिन करनेका कारण भी नहीं रह जाता।

हमें थूकनेके बारेमें भी विचार करना चाहिए। घरमें अथवा दूकानमें चाहे जहाँ थूकनेके बजाय रूमालमें अथवा थूकदानमें थूकनेकी आदत डालना हर तरह जरूरी है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २२-७-१९०५

३६. ट्रान्सवालमें भारतीय होटल

ट्रान्सवालमें भारतीय होटलोंके बारेमें आजतक कोई कानून नहीं बना है। काफिरोंके भोजन- गृहों या गोरोंके होटलोंके परवाने लेने पड़ते है। ट्रान्सवालमें चीनियोंकी संख्या बढ़ जानेसे चीनी होटल खुलने लगे। इनके लिए परवाने की कोई जरूरत नहीं थी। डरके मारे चीनियोंने सरकारसे परवाने मांगे। सरकारने लिखा कि परवानोंकी जरूरत नहीं है। चीनियोंने यह समझा कि परवानेके बिना होटल खुल ही नहीं सकता, इस कारण उन्होंने सरकारको अर्जी भेजी कि परवानेका कानून बनना चाहिए। कहावत है, अपनी करनी, पार उतरनी। तदनुसार, अब इस सम्बन्ध में 'गवर्नमेंट गज़ट 'में विधेयक प्रकाशित कर दिया गया है। अब होटलोंके भारतीय मालिकों को भी परवाने लेने पड़ेंगे। इस विधेयकका विरोध भी नहीं किया जा सकता। इसलिए ट्रान्सवालमें जो लोग भारतीय भोजनालय चलाते हैं उनको बहुत सावधानीसे चलना होगा। हमारा खयाल यह है कि मकान बहुत स्वच्छ होंगे तभी परवाने मिलेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २२-७-१९०५

१. जून २३, १९०५ को।