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३१. पत्र: कैप्टन फॉउलको

[जोहानिसबर्ग]

जुलाई २१, १९०५

कैप्टन फॉउल
पो० ऑ० बॉक्स ११९९
जोहानिसबर्ग
प्रिय कैप्टन फॉउल,

देखता हूँ कि खुफिया पुलिसके लोग अभीतक बिना अनुमतिपत्रवाले भारतीयोंकी खोजमें लगे हुए हैं। अपनी खोज में उन्होंने १६ सालको उम्रके लड़कोंकी भी जांच की है। वे उपनिवेशमें आपके आश्वासनपर रह रहे हैं. विशेषत: वह एक लड़का जिसके बारेमें मैंने आपको लिखा है। महोदय, वे देखने में १६ सालसे कमके हैं। या, जब वे यहाँ आये थे तब तो अवश्य ही इसी उम्रके रहे होंगे। दोष इतना ही है कि उनके माता-पिता यहाँ नहीं है। या तो हैं, और अपने स्वाभाविक अभिभावकोंकी देख-रेखमें रहते हैं, या ऐसे हैं, जिनका लालन-पालन उनके माता-पिताकी जगह ले सकनेवाले रिश्तेदार कर रहे हैं। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि आप खुफिया पुलिसके लोगोंको यह आज्ञा देनेकी कृपा करेंगे कि जबतक मामला तय नहीं होता तबतक वे इन लोगोंको न छेड़ें।

आपका सच्चा,

मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]

पत्र-पुस्तिका (१९०५), संख्या ७२९

३२. श्री ब्रॉड्रिकका बजट

भारत-मन्त्रीने ब्रिटिश लोकसभामें भारतीय राजस्व-लेखेपर विचारके लिए लोकसभाको समितिका रूप देनेके प्रस्तावपर जो बजट-विषयक वक्तव्य दिया, उसमें कई विशेषताएँ हैं। यह एक शुभ लक्षण है कि हालके वर्षों में श्री ब्रॉड्रिकने अपना वक्तव्य, सदाकी भाँति अधिवेशनके अन्तमें पेश करनेके बजाय, जब कि बेंचें खाली पड़ी होती हैं और भारत-मन्त्री उनके सामने भाषणका स्वांग पूरा करते हैं, प्रायः प्रथम बार, उसके मध्यमें पेश किया है। यह परिवर्तन सोच-समझकर किया गया है। श्री ब्रॉड्रिकने कहा, जल्द विचारका लाभ होगा-- उपयोगी आलोचना और अच्छा शासन । " उन्होंने यह आशा भी प्रकट की कि इस उदाहरणका आगे भी अनुसरण किया जायगा, चाहे वे भविष्यमें इस उच्च पदपर रहें अथवा विरोधी पक्षकी बेंचोंपर बैठे। श्री ब्रॉड्रिकने इस अवसरपर अत्यन्त स्पष्ट रूपसे बताया कि बहु-निन्दित भारतने साम्राज्यकी कितनी सेवा की है, और जिन दोनों सेवाओंपर उन्होंने इतना जोर दिया है वे ऐसी है कि उनकी ओर दक्षिण आफ्रिकाका ध्यान जाना चाहिए और उनकी सराहना होनी चाहिए।