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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सम्मान करना हम सबका फर्ज है। उनके धर्मोपदेशके सम्बन्धमें, जो उसमें उनके साथी है वे बादमें जो करना चाहेंगे वह करेंगे। इसलिए मुझे लगता है कि आपको उनका सम्मान करने में पीछे नहीं हटना चाहिए। चन्दा उगाहने आदिके लिए मैंने अपनी अनुमति नहीं दी है और न देनेका विचार है।

मो०क०गांधीके यथायोग्य

श्री आर०पी० भट्ट
बॉक्स ५२९
डर्बन

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें गुजरातीसे;पत्र-पुस्तिका (१९०५),संख्या ७२७

३०. पत्र: मेघराज व मूडलेको

[जोहानिसबर्ग]

जुलाई २१, १९०५

प्रिय महोदय,

आपका ९ तारीखका पत्र मिला। मेरी समझ में अभीतक जोहानिसबर्ग में चन्दा इकट्ठा करनेकी कोई जरूरत नहीं है। मेरे पास एक शिकायत भी आ चुकी है कि वहाँ चन्दा इकट्ठा' करनेके सिलसिलेमें मेरे नामका उपयोग किया जा रहा । मैं चाहता हूँ कि आप इस स्वागतको कोई धार्मिक रूप न दें। आप जानते ही होंगे कि आर्यसमाजके उपदेश और सनातन हिन्दू धर्मके उपदेशोंमें अन्तर है, और सनातनियोंकी ओरसे एक शिकायत मेरे पास भेजी गई है। भारतसे आनेवाले किसी भी विद्वान भारतीयका आदर करना हमारा कर्तव्य है। मैं तो आपसे यह चाहूँगा कि भारतीयोंके सब वाँकी ओरसे ऐसे व्यक्तियोंका उचित स्वागत किया जाये; किन्तु यह तभी हो सकता है जब उसमें कोई साम्प्रदायिक तत्त्व न हो; और, उसके बाद जो आर्यसमाजके उपदेशोंमें दिलचस्पी लेते हों वे उसे विशेष रूपसे देख लें।

आपका विश्वस्त,

मो० क० गांधी

श्री बी० ए० मेघराज व ए० मूडले
पो० ऑ० बॉक्स १८२
डर्बन
[अंग्रेजीसे]

पत्र-पुस्तिका (१९०५), संख्या ७३०



१. प्रो० परमानन्दके लिए; देखिए पिछला शीर्षक।