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पत्र:'डेली एक्सप्रेसको'

लगता है कि बहुत-कुछ खर्च कम हो सकता है। अपने स्वास्थ्यका ध्यान रखें। कसरत और नियमित भोजनकी खास जरूरत है।

मो०क० गांधीके सलाम

श्री हाजी इस्माइल हाजी अबूबकर आमद झवेरी
पोरबन्दर
काठियावाड़
बरास्ता बम्बई

गांधीजीके स्वाक्षरों में गुजरातीसे; पत्र-पुस्तिका (१९०५), संख्या ६९३

२७. पत्र: 'डेली एक्सप्रेसको'

जोहानिसबर्ग

[जुलाई १७, १९०५ के बाद]

सेवामें,
सम्पादक
'डेली एक्सप्रेस'
महोदय

,

आपके एक पत्र-लेखकने आपके पत्रके इसी १७ तारीखके अंकमें 'सिंकरैमसैम' के ठाटदार उपनामसे ब्रिटिश भारतीयोंपर आक्रमण किया है। मुझे भरोसा है कि आप मुझे उसका उत्तर देनेका अवसर देंगे। एक सीधी-सादी भारतीय कहावत है कि आप घोड़ेको पानीके पास ले जा सकते हैं, पर उसे पानी पीनेके लिए बाध्य नहीं कर सकते। इसी तरह जो लोग अपने सम्मुख उपस्थित तथ्योंसे आँखें मूंद लेते हैं उनकी गलत धारणाएँ मिटाई नहीं जा सकतीं। मुझे बहुत आशंका है कि आपका पत्र-लेखक उसी श्रेणीका है। तथापि, उसकी जानकारीके लिए मैं फिरसे यह प्रश्न पूछता हूँ- अगर युद्धके पहले केवल तेरह भारतीय ('कुली' नहीं, जैसा कि आपका पत्र-लेखक लिखना पसन्द करता है) 'दूकानदार, छोटे व्यापारी या फेरीवाले 'थे तो फिर ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्षकी चुनौती' श्री क्लाइनेनबर्गने मंजूर क्यों नहीं की? याद रखिये कि इन दुकानदारोंके नाम समाचारपत्रोंको भेज दिये गये हैं। मैं देखता हूँ कि आपका पत्र-लेखक एक कदम और आगे बढ़ गया है। वह साहसपूर्वक यह कहता है कि इस तेरहकी संख्यामें दूकानदार, छोटे व्यापारी और फेरीवाले भी शामिल हैं। दुर्भाग्यसे उसन एक अशुभ' संख्या पसन्द की है। मैं आपके पास १०० पौंड जमा करनेको तैयार हूँ। अगर मैं दो मध्यस्थोंके सामने यह साबित न कर सकूँ कि युद्धके पूर्व पीटर्सवर्ग में भारतीय दुकानदारों, छोटे व्यापारियों और फेरीवालोंकी संख्या आपके पत्र-लेखककी बताई संख्याकी दुगुनीसे भी ज्यादा थी, तो वह रकम आपके पत्र-लेखकके सूचित किये हुए किसी भी भारतीय-विरोधी संघको

१.देखिए खण्ड ४, पृष्ठ ३५६।

२. पश्चिमके ईसाई देशोंमें १३ की संख्या अशुभ मानी जाती है।