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२१. श्री वाछा और भारतीय

राष्ट्रीय महासभाके संयुक्त मंत्री श्री पाछाने हमें एक पत्र लिखा है, जो प्रोत्साहन, आशा और सुझावसे भरा है। हम उसका मुख्य भाग अन्य स्तम्भमें प्रकाशित करते हैं। उन्होंने एक मिलता-जुलता उदाहरण दिया है, जो दक्षिण आफ्रिकामें ब्रिटिश भारतीयोंके दर्जेके संबंधमें चालू विवादकी दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने लिखा है:

आपके यहाँके प्रवासी यूरोपीय यह भूल गये मालूम पड़ते हैं कि व्यापारी और व्यवसायी ईस्ट इंडिया कम्पनीके विरुद्ध,जो उन्हें १८३३ का कानून बनने तक भारतमें व्यापार करनेसे मना करती थी,बड़ी तीखी भाषामें शिकायत किया करते थे। यहाँ जो आते थे वे 'अनधिकारी' कहे जाते थे,परन्तु, अनधिकारियोंमें धीरता और लगन थी।

और हम जानते हैं कि वे सफल हुए। दक्षिण आफ्रिकाकी हालतोंमें भी लगन और धीरता आवश्यक हैं। १८३३ में न्याय जितना उनके पक्षमें था उसकी अपेक्षा अब हमारे पक्षमें अधिक है। दक्षिण आफ्रिकामें ब्रिटिश भारतीयोंको अपने दर्जेमें सुधार करवानेका तिहरा अधिकार है। १८५८ की घोषणाके विरुद्ध कुछ भी क्यों न कहा जाये, उसमें उन्हें ब्रिटिश प्रजाके सम्पूर्ण अधिकारोंका आश्वासन दिया गया है। वे यह दिखा चुके हैं कि दक्षिण आफ्रिकामें उनका जीवन परिश्रमी, संयमी, कानूनका पालन करनेवाला और ईमानदारीका रहा है; और जैसा बहुत बार माना जा चुका है, वे देशका विकास करने में बहुत उपयोगी सिद्ध हुए हैं। जिम्मेवार मन्त्रियोंने उनसे बार-बार वादे भी किये हैं कि दक्षिण आफ्रिकामें उनके साथ, विशेषत: उनके नागरिक अधिकारोंके बारेमें, न्याय और समानताका बरताव किया जायेगा।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १५-७-१९०५

२२. नेटालमें मकान-कर

नेटाल 'गवर्नमेंट गज़ट' में मकान-करके सम्बन्धमें जो विधेयक प्रकाशित हुआ है उसके विरुद्ध लोगोंकी भावना बढ़ती जाती है। मैरित्सबर्गमें १० तारीखकी रातको इस विषयपर विचार करने के लिए एक आम सभा की गई थी। डर्बनमें गुरुवारकी शामको सभा की गई है। इस विधेयकके विरुद्ध कदम उठानेके लिए बहुत-से लोगोंने अलग-अलग अजियोपर हस्ताक्षर किये हैं। प्रस्तावित मकान-कर व्यक्ति-करसे भी अधिक अप्रिय हो गया है। इस विधेयकमें सूचित प्रस्ताव बहुत ही अपूर्ण हैं और हमेशाके लिए तो सम्भव है ही नहीं, उसे थोड़े समयके लिए मंजूर कराना जोखिम-भरा है। यदि यह कर न्यायपूर्वक लगाया जाये तो स्थायी करके रूपमें वह व्यक्ति-करसे बेहतर कहा जा सकता है। व्यक्ति-कर तो सदाके लिए सहन करनेके योग्य है ही नहीं, यद्यपि कुछ देशोंमें वह वसूल किया जाता है। मकान-करके विरुद्ध लोगोंकी जो

१. दिनशा एदुलजी वाछा (१८४४-१९३६): १९०१ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके कलकत्ता अधिवेशनके अध्यक्ष, वाइसरायकी विधान परिषद के नामजद सदस्य; देखिए खण्ड २, पृष्ठ ४२१।

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