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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आगेका प्रबन्ध करनेका नियम-सा बन जाता है और पहले जिस प्रश्नपर बातचीत हो सकती थी, वहाँ नया प्रबन्ध हो जानेपर निश्चित रूपसे ऐसे अधिकार या अधिकारोंके खिलाफ निर्णय हो जाता है ? इसलिए मैं यह माननेकी धृष्टता करता हूँ कि ऊपर सुझाया गया प्रस्ताव बिलकुल संगत है।

आपका आज्ञाकारी सेवक,

मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]

पत्र-पुस्तिका(१९०५),संख्या ६५९

२०.केप प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिनियम

केप टाउनकी ब्रिटिश भारतीय समिति (ब्रिटिश इंडियन लीग) ने केप प्रवासी-अधिनियमपर अमलके विषयमें उपनिवेश-सचिवको एक प्रार्थनापत्र भेजा था। उसके उत्तरमें उनके दफ्तरसे समितिके अध्यक्षको जो पत्र मिला है उसे हम इसी अंकमें अन्यत्र प्रकाशित कर रहे है। समितिने भारतीय भाषाओंको मान्यता देने के विषयमें जो प्रार्थना की थी उसे उपनिवेश-सचिवने एक वाक्यमें ही उड़ा दिया है। हमें आशा है कि समिति इस प्रश्नको यहीं न छोड़ देगी। उपनिवेश-सचिवके पत्र में 'निवासी' शब्दका जो अर्थ लगाया गया है वह अत्यन्त असंतोषजनक है। उपनिवेशका प्रत्येक भारतीय यह साबित नहीं कर सकता कि वह उपनिवेशमें अचल संपत्तिका मालिक है या उसके स्त्री और बाल-बच्चे यहाँ मौजूद है। यदि इसी अर्थपर आग्रह किया जाता है तो, उपनिवेश-सचिवका इरादा वैसा करनेका न होते हुए भी, इससे अनावश्यक कठिनाइयाँ हुए बिना न रहेंगी। हो सकता है कि कोई व्यक्ति केपमें अपना रोजगार छोड़ दे, केवल कुछ समयके लिए भारत चला जाये, और अपने आपको सदाके लिए केपसे निष्कासित पाये, क्योंकि उसकी स्त्री और उसके बाल-बच्चे उपनिवेशमें नहीं हैं या वह अचल सम्पत्तिका मालिक नहीं है। इसका अर्थ होगा उस गरीब दूकानदारकी बिलकुल बरबादी, जो भ्रमवश अपने आपको सुरक्षित समझकर, अपना रोजगार अस्थायी रूपसे अपने मैनेजरके सुपुर्द करके भारत चला गया हो। यह उदाहरण काल्पनिक भी नहीं है, क्योंकि हम जानते है कि ऐसे अनेक भारतीयोंको केपमें फिर आनेसे इनकार करने की घटनाएँ सचमुच घटित हो चुकी है। इस कारण न्यायका तकाजा पूरा करनेके लिए, कर्नल क्रू' कमसे-कम जो कुछ कर सकते हैं वह है उन लोगोंके अधिकार मान्य कर लेना जो फिर यहाँ लौटने के इरादेसे अपना रोजगार या नौकरी छोड़कर चले गये हों। तब वे नर्मीसे व्यवहार करने की बात कह सकेंगे, क्योंकि अभीतक तो उनकी व्याख्याके अनुसार कानूनके व्यवहारमें नर्मी बिलकुल नहीं है, कठोरता ही है । और तभी ब्रिटिश भारतीय समिति सरकारके रुखको मुनासिब मान सकेगी। अब तो हम, उनका अधिकतम सम्मान करते हुए भी, यह खयाल करते हैं कि यह कानून अन्यायपूर्ण और अनुचित है और केपवासी ब्रिटिश भारतीयोंको अवश्य ही भारी कठिनाइयोंमें डाल देगा।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १५-७-१९०५

१. केप कालोनीके उपनिवेश-सचिव।