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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सेवा करनेवाले व्यक्ति हैं। वतनियोंके विद्रोहमें इन पट्टोंका बहुत महत्त्व नहीं है; किन्तु यूरोपीय लोगोंमें तो यह परिपाटी रूढ़ है कि इस पट्टेवाले व्यक्तिपर हथियार नहीं उठाया जा सकता।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-६-१९०६
 

३८९. किरायेके बारे में महत्त्वपूर्ण मुकदमा

नेटालके सर्वोच्च न्यायालय में मासिक किरायेदारोंको नोटिस देनेके बारेमें एक महत्त्वपूर्ण मुकदमेका फैसला हुआ है। साधारण मान्यता यह है कि किरायेदारको चाहे जिस तारीख से एक महीनेकी सूचना देना काफी है, और किरायेदार भी ऐसी सूचना देकर घर छोड़ सकता है। जान पड़ता है कि ऐसा ही वकीलोंका भी खयाल था। किन्तु सर्वोच्च न्यायालयने फैसला दिया है कि सूचना उसी तारीखसे दी जानी चाहिए जिस तारीखको किरायेदार आया हो; अर्थात् यदि कोई किरायेदार अमुक महीनेकी छठी तारीखको आया हो, तो वह घर छोड़नेकी एक महीनेकी सूचना छठी तारीखसे ही दे सकता है अथवा छठी तारीख से शुरू होनेवाली पेशगी सूचना दे सकता है। इसी तरहकी सूचना देने के लिए मकान मालिक भी बाध्य है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-६-१९०६
 

३९०. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

श्री भायातके अनुमतिपत्रका मुकदमा

जैसा श्री सुलेमान मंगाका मामला था, वैसा ही श्री इब्राहीम भायातका भी हुआ है। । श्री मंगाको मियादी अनुमतिपत्र पानेका पूरा हक था, फिर भी अनुमतिपत्र अधिकारीने नहीं दिया। किन्तु अन्तमें उन्होंने डेलागोआ-वे से अनुमतिपत्र प्राप्त किया। श्री इब्राहीम भायात ट्रान्सवालके पुराने निवासी हैं और बहुत-से नामी गोरोंसे उनकी जान-पहचान है। उनकी अर्जीको बहुतसे व्यक्तियोंका समर्थन प्राप्त था। फिर भी चूंकि वे ठीक लड़ाईके समय नहीं, बल्कि एक वर्ष पहले ट्रान्सवाल छोड़कर चले गये थे, इसलिए अनुमतिपत्र देने से इनकार किया गया। यह तो जुल्मकी हद हो गई। श्री भायातको अपने भाईके व्यापारके लिए हर हालत में जाना था, इसलिए उन्होंने मुकदमा दायर करना तय किया। उन्होंने श्री बेन्सनकी सलाह ली थी और फोक्सरस्टमें श्री लिस्टनस्टाइनने पैरवी की थी। श्री भायातके बचाव में नीचे लिखी दलीलें दी गई :

(१) श्री इब्राहीम भायात ट्रान्सवालके पुराने निवासी हैं।

(२) उन्होंने डच सरकारको तीन पौंड दे दिये थे; और, तीन पौंड देकर ट्रान्सवालमें सदाके लिए रहनेका हक प्राप्त कर लिया था।

(३) लन्दन समझौते के अनुसार ऐसे लोगों को स्थायी रूपसे रहनेका अधिकार है।[१]

 
  1. लन्दन समझौते की शर्तों के अनुसार जबतक कोई व्यक्ति खतरनाक या राजद्रोही न समझा जाये तबतक उसके विरुद्ध गवर्नर अपने विवेकाधिकारका उपयोग नहीं कर सकता। समझौते की शर्तोंके द्वारा सभी ब्रिटिश प्रजाजनोंको भूतपूर्व गणराज्यमें मुक्त और अबाध प्रवेशका भी अधिकार दिया गया था।