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३८५. भारतीय स्वयंसेवक

युद्ध में भारतीय भाग लें अथवा न लें, इस बातकी काफी चर्चा इस पत्र में हो चुकी है। सरकारने २० आदमियोंका दल स्वीकार किया है और कांग्रेसने उतने आदमी तैयार कर दिये हैं। इसका असर प्रमुख गोरोंके मनपर बहुत अच्छा हुआ है। हमने इतना किया, इससे कुछ प्रमुख गोरे मानने लगे हैं कि ऐसे कामोंके लिए हममें स्वाभाविक क्षमता है, और इस आधारपर उनकी राय है कि हम स्थायी स्वयंसेवकोंमें भरती होनेकी माँग करें।

इस सुझावमें और जो डोलीवाहक दल तैयार हो चुका है उसमें बहुत अन्तर है। डोली ले जानेवाली टुकड़ी थोड़े ही दिनोंके लिए है। उस टुकड़ीको सिर्फ डोली लाने-लेजानेका काम दिया जानेवाला है और उस कामकी जरूरत न रहनेपर उसे छुट्टी मिल जायेगी। इन लोगोंको हथियार रखने की इजाजत भी नहीं है। स्वयंसेवक दलका काम इससे बिलकुल अलग है और अपेक्षाकृत महत्त्वपूर्ण है। वह दल स्थायी होगा। उसमें शामिल होनेवालोंको हथियार मिलेंगे और हर वर्ष निर्धारित दिनों में फौजी काम सीखनेके लिए जाना पड़ेगा। उन्हें अभी तो लड़ाईका काम नहीं करना पड़ेगा। लड़ाई हमेशा नहीं होती। अन्दाजन बीस वर्ष में एक बार लड़ाई होती है, ऐसा लोग कहते हैं। नेटालमें वतनी-विद्रोह हुए आज बीस वर्षसे अधिक समय हो गया है। इसलिए स्वयंसेवकोंको भरती होनेमें किसी भी प्रकारकी जोखिम नहीं है। उसे एक तरहकी वार्षिक सैर कहा जा सकता है। उसमें दाखिल होनेवालेको पूरा व्यायाम मिलता है, जिससे उसका शरीर नीरोग रहता है और तन्दुरुस्ती अच्छी हो जाती है। स्वयंसेवकों में भरती होनेवालेको सदा अच्छा आदर मिलता है। उसे लोग चाहते हैं और 'नागरिक सैनिक' कहकर बखान करते हैं।

यदि भारतीय इस अवसरका लाभ उठायें तो, हमारे विचारसे, यह बात बहुत अच्छी होगी। इससे सहज ही राजनीतिक लाभ मिलना सम्भव है। वैसा लाभ हो या न हो, किन्तु यह काम करना हमारा कर्तव्य है, इसमें कोई सन्देह नहीं है। सैकड़ों प्रमुख गोरे इस काममें भाग लेते हैं और इसमें गौरव मानते हैं। सरकार कानूनन किसी भी व्यक्तिको इसके लिए बाध्य कर सकती है। हम जिस देश में रहते हैं उस देश के सुरक्षा कानूनों का हमें पालन करना चाहिए। इस तरह चाहे जिस दृष्टिसे देखें, यह ठीक मालूम होता है कि यदि हम स्वयंसेवकों में शामिल हो सकें, तो हमारे ऊपर जो लांछन लगाया जाता वह इससे हमेशा के लिए दूर हो जायेगा।

आज पन्द्रह वर्षोंसे भारतीयोंपर गोरे यह तोहमत लगाते आये हैं कि यदि नेटालकी रक्षा में अपनी जान देनेकी नौबत आ पड़े तो भारतीय लोग अपने कर्त्तव्यका स्थान छोड़कर घर भाग जायेंगे। इसका जवाब हम कहकर नहीं दे सकते। इसका एक ही तरीकेसे स्पष्टीकरण किया जा सकता है, और वह है करके दिखाना। वैसा करनेका आज समय आया जान पड़ता है। किन्तु वह किस तरह किया जाये? गिरमिटसे छूटे हुए गरीब लोगोंको स्वयंसेवक बनाकर नहीं। व्यापारी वर्गका कर्तव्य है कि वह स्वयं इस आन्दोलन में भाग ले। हर दुकानसे एक व्यक्ति दिया जाये, तो भी काफी व्यक्ति तैयार हो सकते हैं। ऐसा करनेसे व्यापारको धक्का नहीं लगेगा। जो आदमी शामिल होंगे उनकी स्थिति सुधरेगी, उत्साह बढ़ेगा और माना जायेगा कि उन्होंने नागरिककी हैसियतसे अपना कर्तव्य पूरा किया।

कुछ लोगोंका खयाल है कि लड़ाई में जाने अथवा उसके लिए तैयारी करने में जानकी अधिक जोखिम है। यह निरा भ्रम है। इसके प्रमाण हम अगले सप्ताह देना चाहते हैं।[१]

 
  1. देखिए "भारतीय लड़ाईमें जायें या नहीं?", १४ ३७६।