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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

शिष्टमण्डलने कुछ और भी दिक्कतें बताई जिनपर लॉर्ड सेल्बोर्नने आवश्यक ध्यान देनेका वचन दिया है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ८-७-१९०५

११. भारतमें नमकपर कर

डॉ० हचिन्सन द्वारा कड़ी आलोचना

भारतमें नमकपर कर है, इसके विरोधमें हमेशा आलोचनाएँ हुआ करती हैं। इस बार सुविख्यात डॉ० हचिन्सनने इसकी आलोचना की है। वे कहते हैं कि जापानमें इस प्रकारका कर था, वह अब समाप्त कर दिया गया है। फिर भी ब्रिटिश सरकार इसे कायम रखती है, यह बड़ी शर्मकी बात है। यह कर तुरन्त बन्द कर देना चाहिए। नमक ऐसी चीज है जिसकी आहारमें आवश्यकता होती है। भारतमें कुष्ठ रोग बढ़ रहा है उसका कारण नमक-कर है, ऐसा कुछ अंशमें कहा जा सकता है। डॉ० हचिन्सन मानते हैं कि नम-कर एक जंगली रिवाज है और ब्रिटिश सरकारके लिए अशोभनीय है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ८-७-१९०५

१२. पत्र: दादा उस्मानको

[जोहानिसबर्ग]

जुलाई ८, १९०५

सेठ दादा उस्मान,

आपका पत्र मिला। मुझे लगता है, आपके फाइहीड जानेकी पूरी जरूरत है। वहाँ व्यवस्था किये बिना आप कुछ नहीं कर सकेंगे, ऐशी आशंका है। मुझसे यहाँ बैठे-बैठे कुछ नहीं होता। यदि जुर्माना हुआ तो आपकी गैरहाजिरीमें दुकान खुली रखनेकी सिफारिश नहीं कर सकूँगा।

हुंडामलकी अपीलपर बहुत कुछ निर्भर रहेगा। उस अपीलके सम्बन्धमें पूरी-पूरी साव- धानी रखवाएँ। उस अपीलमें कौन पैरवी करेगा यह लिखें। उसमें जीत हो तो दूकान फिर खोल सकेंगे। बीच में आप टाउन क्लार्क आदिसे जाकर मिलेंगे तो फायदा होना सम्भव है।

अब्दुल्ला सेठ हिसाब न दें तो मुझे घबरानेकी जरूरत दिखाई नहीं देती। दादा सेठको ज्यादा पैसा मिलेगा, यह आशा तो छोड़ ही दी है। इसलिए घबरानेका कारण तनिक भी नहीं है।

मो० क० गांधीके सलाम

सेठ दादा उस्मान
वॉक्स ८८
डर्बन

गांधीजीके स्वाक्षरों में गुजरातीसे; पत्र-पुस्तिका (१९०५), संख्या ५८२

१. देखिए खण्ड ४, पृष्ठ ३७५, ३८५-८६ और ३९४ ।