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३७४. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

जून ६, १९०६

ट्रामके मामलेकी कहानी

ट्रामके मामलेने दूसरा रूप धारण कर लिया है। नगर परिषद और भारतीयोंके बीच कशमकश चल रही है। दोनोंमें से एक भी पक्ष हार माननेको तैयार नहीं है।

ट्रामगाड़ियोंके लिए कानूनकी जरूरत नहीं है, इस बहाने नगर परिषदने कानून रद कर दिया। दूसरी ओर उसकी एक समितिने नया कानून बना डाला। मुझे जो निजी समाचार मिले हैं उनसे मालूम होता है कि परिषदकी उस समिति में श्री डंकन[१] भी गये थे। समितिकी इच्छा थी कि कानूनमें ऐसी धारा शामिल की जाये जिससे भारतीयोंको ट्राममें बैठनेकी छूट न रहे। वे चाहें तो पृथक् ट्राममें बैठें। परन्तु जिन भारतीयोंको विशेष रियायती परवाने दिये गये हों वे सब ट्रामगाड़ियोंमें बैठ सकें। कहा जाता है कि समितिके इस विचारका श्री डंकनने विरोध किया। उन्होंने कहा कि भारतीय समाजने रेलगाड़ीके सम्बन्धमें सब्र कर लिया, उसी तरह ट्राममें भी छूट रहेगी तो वह सब्र कर लेगा। अधिक सख्ती हुई तो वह उत्तेजित हो जायेगा और उसका परिणाम ठीक न होगा। समिति अभी भी नियम बना रही है। कुछ दिनोंमें नियम प्रकाशित होनेवाले हैं। तब ज्यादा बातें मालूम हो सकेंगी।

इस तरह नगर परिषद कार्रवाइयाँ करती रहती है। इस बीच भारतीय समाजने एक और काम किया है। संघके प्रमुख श्री अब्दुल गनी और इस समाचारपत्रके वर्तमान अंग्रेज सम्पादक श्री पोलक ट्राममें बैठने गये। कंडक्टरने श्री अब्दुल गनीको रोका। तब श्री अब्दुल गनीने कहा कि जबतक बल-प्रयोग नहीं किया जायेगा, वे स्वयं नीचे नहीं उतरेंगे। इसपर कंडक्टरने पुलिसको बुलाया। पुलिसको भी वही उत्तर मिला। अन्तमें ट्रामका निरीक्षक आया। उसने विनयपूर्वक बातचीत की। आखिर यह तय हुआ कि ट्राम रोकनेका आरोप लगाकर श्री अब्दुल गनीपर मुकदमा चलाया जाये और इस बातको मानकर श्री अब्दुल गनी तथा श्री पोलक गाड़ीसे उतर गये। यह खबर जैसे ही निरीक्षकने नगर परिषदको दी, टाउन क्लार्कने [उन दोनोंको] तुरन्त मिलनेके लिए चिट्ठी भेजी। उसने कहा कि अब भारतीय बहुत कर चुके, उन्हें नगर परिषदको अधिक हैरान नहीं करना चाहिए। कुछ ही दिनोंमें उस सम्बन्धमें कानून प्रकाशित हो जायेगा; और यदि वह ठीक न लगे तो उन्हें उसका विरोध करना चाहिए। टाउन क्लार्कने प्रार्थनाकी है कि अब नगर-परिषदको तकलीफ न दें तो अच्छा होगा।

विलायतको शिष्टमण्डल

विलायतको शिष्टमण्डल भेजनेके बारेमें सर विलियम वेडरबर्नका दूसरा तार आया है। उसमें उन्होंने लिखा है कि यद्यपि हमारी तरफसे काम करनेवाली समितिको अपनी सफलताकी बहुत आशा नहीं है फिर भी वह सिफारिश करती है कि जिस जहाजसे संविधान-समिति यहाँसे रवाना हो, उसीसे अकेले श्री गांधीको भेजा जाये। संविधान-समिति, सम्भव है, जुलाईके आरम्भ में विलायत जायेगी। इस शिष्टमण्डल में किन व्यक्तियोंको भेजा जाये, इस विषय में विचार करनेके लिए पिछले बुधवारकी

 
  1. उपनिवेश-सचिव।