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९. ऑरेंज रिवर उपनिवेशके कानून

इस अंक में हम ऑरेंज रिवर उपनिवेशके ब्रिटिश भारतीयोंकी स्थितिके विषयमें दो महत्त्वपूर्ण पत्र प्रकाशित कर रहे हैं। पहला पत्र उक्त उपनिवेशके उपनिवेश-सचिवका वह संक्षिप्त और विलम्बित उत्तर है, जोकि उन्होंने जोहानिसबर्गके ब्रिटिश भारतीय संघ द्वारा एशियाई- विरोधी नगरपालिका-कानूनोंके विरुद्ध की गई आपत्तिपर भेजा है। ये कानून समय-समयपर ऑरेंज रिवर उपनिवेशको नगरपालिकाओंने बनाये हैं और लेफ्टिनेंट गवर्नरने स्वीकृत किये हैं। दूसरा पत्र आदिवासी-रक्षक सभाके मंत्री श्री एच० आर० फॉक्सबोर्नका है जो उन्होंने श्री लिटिलटनके नाम लिखा है। ये दोनों एक-दूसरेसे बिलकुल उलटे हैं। उपनिवेश-सचिवने लिखा है कि सरकारका इरादा ऐसा कोई कानून बनानेका नहीं है जिससे कि ऑरेंज रिवर उपनिवेशकी नगरपालिकाओंके वर्तमान स्थानिक शासन-अधिकारोंमें किसी प्रकारकी कमी हो। हमारी सम्मतिमें यह इस प्रश्नकी सचाई स्वीकार कर लेना है। ब्रिटिश भारतीय संघने इन अधिकारोंको कम करनेकी माँग कभी नहीं की, क्योंकि लेफ्टिनेंट गवर्नरको पहले ही निषेधाधिकार प्राप्त है। जबतक लेफ्टिनेंट गवर्नर मंजूरी न दें तबतक कोई भी उपनियम लागू नहीं होता, और ऑरेंज रिवर उपनिवेश तक में हमें ऐसे किसी कानूनका पता नहीं जो लेफ्टिनेंट गवर्नरको किसी नगर- पालिकाके बनाये हुए उपनियमोंपर मंजूरी देनेके लिए मजबूर करता हो। इसके विपरीत, परम- श्रेष्ठ लेफ्टिनेंट गवर्नरको हिदायतें दी गई है कि वे किसी भी रंगभेदकारी कानूनपर मंजूरी न दें। और यह सभी मानेंगे कि जब वे सारे उपनिवेशके कानूनोंके विषयमें ऐसा नहीं कर सकते, तब वे उपनिवेशकी किसी खास नगरपालिकामें लागू कानूनोंके विषयमें भी ऐसा नहीं कर सकते। उपनिवेश सचिवने जो कारण बताया है वह व्यंग्यात्मक है। उन्होंने लिखा है, "चूंकि उपनिवेशमें ब्रिटिश भारतीयोंकी संख्या इतनी थोड़ी है, इसलिए मेरा खयाल है कि, आप भी मानेंगे कि आपके उठाये प्रश्नका 'व्यावहारिक ' महत्त्व बहुत नहीं है। व्यावहारिक' शब्दके नीचे, पत्रमें रेखा खिची हुई है। इसका अर्थ क्या है ? इससे सिर्फ प्रकट होता है कि ऑरेंज रिवर उपनिवेशके दरवाजे ब्रिटिश भारतीयोंके लिए सदा बन्द रहेंगे। और जो कोई ब्रिटिश भारतीय वहाँ आयेगा वह इन प्रतिवन्धक अधिकारोंके बावजूद वैसा करेगा, और यदि वह आपत्ति करता है तो उससे यह कह दिया जायेगा कि ये कानून रद नहीं किये जा सकते; मुंहतोड़ जवाब दिया जायेगा: अब तो मौका निकल गया है। क्या हम उपनिवेश-सचिवसे पूछ नहीं सकते कि यदि ऑरेंज रिवर उपनिवेशमें इतने थोड़े ब्रिटिश भारतीय हैं तो उनका यह अनावश्यक अपमान क्यों किया जाता है? क्या किसी प्रकारका औचित्य न होते हुए भी किसी समूचे राष्ट्र की भावनाओंको ठेस पहुँचाना व्यावहारिक नीति-निपुणता है ? ऑरेंज रिवर उपनिवेशकी नगरपालिकाएँ निस्सन्देह इतना अनुचित काम नहीं करेंगी कि स्वयं उपनिवेश-सचिवके कथनानुसार जो मामला उनके लिए महत्त्वका नहीं है उसपर लेफ्टिनेंट गवर्नर तक की आपत्ति सुननेसे इनकार कर दें। ऐसा वे तभी करेंगी जबकि उन्हें अपनी कुछ भी हानि न पहुंचानेवाले लोगोंका अकारण अपमान करने में आनन्द आता हो। परन्तु उपनिवेश-सचिवके पत्रकी चर्चा हम अधिक नहीं करेंगे। हमें प्रसन्नता है कि ब्रिटिश भारतीय संघ इस मामले में पहले ही कदम उठा चुका है और उच्चायुक्तकी सेवामें प्रार्थनापत्र भेज चुका है।

[१] अकोड लिटिलटन, उपनिवेश-मन्त्री, १९०३-५ ।

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