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चीनकी स्थिति में परिवर्तन

एक भाषणसे इसका पता चलता है। उन्होंने कहा है कि एक आदमीके पास दस लाख या बीस लाख पौंड हों, तो उसे हम अनुचित नहीं मानते, लेकिन आज तो यह बात इस हद तक पहुँच गई है कि अमेरिकामें बहुत से ऐसे हैं, जिनके पास अरबोंकी सम्पत्ति है। उन्होंने कहा है कि ऐसे अरबपति कभी सरकारपर भी बहुत प्रभाव डाल सकते हैं। वे चाहें तो देशके संविधानको, जैसे न्यायालयोंको, नगरपालिका अथवा संसदके चुनाव वगैराको अपने पैसेके जोरसे अपनी इच्छाके मुताबिक प्रभावित कर सकते हैं। यह स्थिति खतरनाक जान पड़ती है, इसलिए यह सोचा गया है कि कानूनके द्वारा धनको सीमा निश्चित की जानी चाहिए। एक आदमी दस लाख पौंडसे अधिक न रख सकेगा। अगर किसीके पास इससे अधिक है, तो वह अपनी इच्छानुसार उसे अपने सगे-सम्बन्धियों आदिमें अमुक प्रकारसे हिस्से करके बाँट दे। राष्ट्रपति रूजवेल्टके इन विचारोंके कारण अमेरिकाके अरबपतियोंमें एक खलबली मच गई है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २६-५-१९०६
 

३५६. चीनकी स्थिति में परिवर्तन

यह तो निर्विवाद है कि सुधार दिनपर-दिन आगे बढ़ता जा रहा है। यूरोपके सुधारोंने भारतपर कितना प्रभाव डाला है, इससे कम ही लोग अपरिचित होंगे। जापानने जो सारी दुनियाको आकर्षित करनेवाली उन्नति की है उससे इस सुधारकी गतिको बढ़ावा मिला है। जिधर देखिए उधर जापानकी चर्चा सुनी जाती है। ऐसी स्थिति में जापानके पड़ोसी चीनपर इन सुधारोंका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही है।

चीनमें जगह-जगह सुधारके अंकुर फूटने लगे हैं। एक ओर चीनमें रहनेवाले जापानियोंके कारण चीनियोंका ध्यान शिक्षाकी तरफ गया है। दूसरी ओर सैकड़ों चौनी नौजवान विद्या और कला सीखनेके लिए परदेश जाने लगे हैं। जापानमें रहनेवाले कुछ चीनी विद्यार्थी हर प्रकारकी शिक्षा प्राप्त करनेके लिए, कुछ कला-कौशल सीखनेके लिए, अमेरिका तक भी पहुँचे हैं। ये विद्यार्थी वहाँसे केवल कला-कौशल ही सीखकर आते हैं, सो बात नहीं। जानने लायक बात तो यह है कि वे कला-कौशलके साथ अमेरिका, जापान और यूरोपके सुधरे हुए विचार भी अपने साथ लाते हैं। साथ ही, इन देशोंमें उत्पन्न स्वतन्त्रताके जोशने भी उनके खौलते हुए खूनपर पूरा प्रभाव डाला है। इसके परिणामस्वरूप ये विद्यार्थी चीनकी उन्नतिके लिए महान प्रयत्न करने लगे हैं।

वे जगह-जगह सभाएँ और भाषण करके लोगोंके दिलोंपर अपने विचारोंकी छाप डाल रहे हैं। नये-नये पत्र निकाल कर चारों तरफ उपदेशकोंको भी भेजते हैं और इस तरह अनेक प्रकारसे लोगोंके मनपर संस्कार डालते हैं, तथा स्वतन्त्रताके और सुधरे हुए विचारोंके बीज बोते हैं। इसके सिवा ऐसा नहीं लगता कि वे राजनीतिक परिवर्तनोंकी आशा नहीं करते। वे विदेशियोंको अपने देशसे दूर हटानेका आन्दोलन चलाने लगे हैं। इससे गोरे सोचमें पड़ गये हैं। कहीं-कहीं अमेरिकी मालका बहिष्कार कुछ-कुछ सफलताके साथ चल रहा है; यह भी इस नई हवाका ही नतीजा है। इस नई जागृतिमें कुछ जापानी भी आगे बढ़कर हाथ बँटाते हैं।

स्वाभाविक है कि उन्नतिकी ये किरणें हर सुधारकी प्रगति चाहनेवालेको रुचें। फिर भी कुछ यूरोपीय ऐसा कहते हैं कि यह जोश हृदसे ज्यादा है और गलत रास्ते ले जा सकत