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३५१. नेटाल गवर्नमेंट रेलवे : एक शिकायत

एक संवाददाताने हमें गुजरातीमें पत्र लिखा है, उसका अनुवाद नीचे दिया जाता है :

मई १, १९०६ को जो रेलगाड़ी ६ बजे शामको डर्बनसे रवाना हुई, उसमें श्री कुन्दनलाल शिवलाल महाराज नामके एक भारतीय सज्जनने एस्टकोर्टसे एनर्सडेलके लिए दूसरे दर्जेका टिकिट लिया। वे सुरक्षित डिब्बेमें एक जगहपर बैठ गये। पर चूंकि उस गाड़ीसे जानेवाले दूसरे दर्जेके गोरे मुसाफिर बहुत थे, स्टेशन मास्टरने श्री कुन्दनलालको अपने डिम्बेसे निकलकर तीसरे दर्जेके डिब्बेमें जा बैठनेको मजबूर किया।

हमारा संवाददाता आगे लिखता है कि पीड़ित मुसाफिर द्वारा इस मामलेपर महा प्रबन्धकका ध्यान आकर्षित किया जा चुका है। हमें आशा है कि इस शिकायतकी जांच पूरे तौरसे की जायेगी। एस्टकोर्टके स्टेशन मास्टरके कथित व्यवहारको उचित ठहरानेकी कोई भी वजह दिखलाई नहीं पड़ती।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २६-५-१९०६
 

३५२. नेटालका भूमि-विधेयक

पिछले सालकी तरह इस साल भी गोरोंकी ओटमें हमारे बच जानेकी सम्भावना है। नेटालके नये विधेयकोंमें जमीनपर कर लगानेका विधेयक पेश होनेके बारेमें हम पहले खबर दे चुके हैं। यह विधेयक नेटालकी संसदमें पेश हो चुका है। लेकिन जब समितिमें इसकी छान-बीन हुई, यह रद कर दिया गया। संसदके एक सदस्य श्री रेथमनने यह प्रस्ताव रखा था कि इस विधेयकसे रेलवेकी सीमासे दूर रहनेवाले लोगोंको बहुत नुकसान होगा, इसलिए यह रद किया जाना चाहिए। इस प्रस्तावके पास हो जानेसे नेटाल सरकारकी हार हुई है। असल में यह ऐसा मौका है जब पदाधिकारियोंको इस्तीफा देना चाहिए। उन्होंने यह नहीं किया और पदोंपर कायम हैं। लेकिन भूमि-करवाला विधेयक अभी कुछ समयके लिए लटका रहेगा। देखना है कि आगे क्या होता है। हालांकि यह उम्मीद की जा सकती है कि उक्त विधेयक इस सत्र में पास नहीं होगा।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २६-५-१९०६