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पत्र : कैखुसरू व अब्दुल हकको

पूरी तरहसे सिद्ध करता है; क्योंकि यदि ब्रिटिश भारतीयोंकी अत्यल्प संख्याके कारण उठाया गया प्रश्न कोई व्यावहारिक महत्ता नहीं रखता, तो मेरे पत्रमें उल्लिखित ढंगका विधान स्वीकृत करनेका भी कोई व्यावहारिक अर्थ नहीं हो सकता। वह उपनिवेशके लिए किसी प्रकार उपयोगी न होकर भी निरर्थक रूपसे दक्षिण आफ्रिकाके ब्रिटिश भारतीय समाजकी भावनाओंको चोट पहुँचाता है और इसलिए मेरा संघ ऐसी आशा करता है कि परमश्रेष्ठ उन उपधाराओंकी, जो ऑरेंज रिवर कालोनीकी विभिन्न नगरपालिकाओंमें पास की गई है तथा स्वीकृत की गई हैं, उदारतापूर्वक जाँच कराने और, राहत देनेकी कृपा करेंगे।

आपका आज्ञाकारी सेवक,

अब्दुल गनी

अध्यक्ष,

ब्रिटिश भारतीय संघ

[अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ८-७-१९०५

८. पत्र: कैखुसरू व अब्दुल हकको

[जोहानिसबर्ग]

जुलाई ३, १९०५

भाई श्री ५ कैखुसरू व अब्दुल हक,

आपका पत्र मिला। मुझे आपके उत्तरसे' सन्तोष है। आप लिखनेवालेका नाम जाननेकी इच्छा करते हैं, यह ठीक नहीं है। मैंने आपको लिखा है कि आपको उसे जाननेकी कोई जरूरत नहीं है। आपके लिए सचेत रहनेकी भी कोई बात नहीं है। यह सब भूल जाना है। जिसे अपना कर्तव्य पालन करना है उसे दूसरे जो भी कहें उससे निर्भय रहना चाहिए।

खाते में मेरे नामे जो पैसा निकलता है उसका हिसाब मुझे भेजें। जो पैसा छापाखानेके लिए दिया गया है वह अभी मैंने जमा नहीं किया।

मो० क० गांधीके सलाम

श्री जालभाई सोराबजी ब्रदर्स
११० फील्ड स्ट्रीट
डर्बन

गांधीजीके स्वाक्षरों में गुजरातीसे; पत्र-पुस्तिका (१९०५), संख्या ५११


१. यह गांधीजीके २७ जून १९०५ के पत्रका उत्तर था । देखिए खण्ड ४, पृष्ठ ५१२ ।