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३४९. पत्र : 'ट्रान्सवाल लीडर' को[१]

जोहानिसबर्ग

मई २१, १९०६

सेवामें,

सम्पादक
'ट्रान्सवाल लीडर'

[जोहानिसबर्ग]
महोदय,

ब्रिटिश भारतीय संघके सुझावपर चलाये गये ट्रामगाड़ी अभियोगके सम्बन्धमें आपने जो अग्रलेख लिखा है, उसके बारेमें मैं यह कहनेकी अनुमति चाहता हूँ कि न्यायाधीशके निर्णयसे ट्रामगाड़ियाँ हर दर्जे के रंगदार लोगोंके लिए उपलब्ध नहीं हो जातीं। उदाहरणके लिए इस कानूनसे वे बतनियोंके लिए उपलब्ध नहीं और इससे वह कानून भी अछूता रहता है जिसके अनुसार कंडक्टर उन मुसाफिरोंको बिठानेसे इनकार कर सकता है जो शराब पिये हों, खराब कपड़े पहने हों अथवा उनका बैठना अन्यथा आपत्तिजनक हो। इसलिए जब आप यह कहते हैं कि आपकी "टिप्पणी मामलेके अत्यन्त व्यापक रूपोंको ध्यान में रखकर लिखी गई है" तब आप परिषदके पक्षको दुर्बल कर देते हैं। क्योंकि, कभी किसीने भी यह नहीं कहा कि ट्राम-गाड़ियोंका उपयोग किसी भेदभाव के बिना सभीको करनेका अधिकार होना चाहिए।

किन्तु, महोदय, नगर परिषदने एक ऐसे तरीकेसे जो सम्माननीय नहीं है, भारतीयोंको उनकी जीतके फलसे वंचित कर दिया है। क्योंकि 'गवर्नमेंट गजट' के इसी अंकमें एक उपनियम छपा है जिससे ट्रामगाड़ियोंसे सम्बन्धित उपनियम मंसूख हो जाते हैं। इसका अर्थ है कि अब ट्रामगाड़ियाँ यातायात के नियंत्रण सम्बन्धी उपनियमोंके बिना ही चलाई जायेंगी, किन्तु उसका अर्थ यह भी है कि अब ब्रिटिश भारतीयोंके लिए सामान्य उपनियमोंके अन्तर्गत नगरपालिकाकी ट्रामगाड़ियों में बैठने के अधिकारका दावा करना सम्भव न होगा। और नगरपालिका, मैं आशा करता हूँ, यह तर्क उपस्थित करेगी कि इस मंसूखीसे पुरानी सरकारके चेचक सम्बन्धी वे कायदे फिर बहाल हो जाते हैं, जो, न्यायाधीशके फैसलेके अनुसार, अब मंसूख किये गये उपनियमोंकी मौजूदगी में लागू नहीं होते थे। अंग्रेजोंका यह गर्व उचित ही है कि वे अनुचित प्रहार कभी नहीं करते। मुझे अत्यन्त आदरके साथ यह कहना है कि नगर परिषदने उक्त विधिको अपनाकर उस गर्व-योग्य परम्पराका त्याग कर दिया है। मुझे यही दिखाई देता है और आशा है कि प्रत्येक दूसरे करदाताको भी ऐसा ही दिखाई देगा।

तब नगर परिषदकी कार्रवाईके बाद फिलहाल, मेरे पेश किये हुए तथ्योंके अलावा भी, आपका यह भय निराधार है कि ट्रामगाड़ियोंका उपयोग "हर दर्जेके रंगदार लोग" करेंगे।

 
  1. यह "टामका मामला" शीर्षकसे छापा गया था।