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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


विलायतसे आया हुआ आयोग

इस आयोग के सामने भारतीयोंका शिष्टमण्डल मंगलवार २२ तारीखको दिनमें ३-१५ बजे जानेवाला है। उस समय जो होगा उसका विवरण, समय रहा तो, इस अंकमें दूंगा।

मंगलवार, २२-५-१९०६

संविधान समितिके पास भारतीय शिष्टमण्डल

आज भारतीय शिष्टमण्डल संविधान समितिसे मिल आया। शिष्टमण्डल में श्री अब्दुल गनी (अध्यक्ष), श्री हाजी वजीर अली, श्री इब्राहीम सालेजी कुवाडिया (जोहानिसबर्ग), श्री इस्माइल पटेल (क्लार्क्सडॉप), श्री इब्राहीम खोटा (हीडेलबर्ग), श्री इब्राहीम जसात (स्टैंडर्टन), श्री ई° एम° पटेल (पॉचेफस्ट्रम) तथा श्री मो° क° गांधी उपस्थित थे। श्री हाजी हबीबने तार दिया था कि अधिक काम होनेके कारण वे आखिरी घड़ी तक नहीं निकल सके।

शिष्टमण्डलकी ओरसे वक्तव्य तैयार किया गया था। वह आयोगके सदस्योंके सामने पेश किया गया। आयोगके अध्यक्षने उसे पढ़नेके बाद कुछ प्रश्न पूछे और कहा कि यदि किसीको और ज्यादा प्रश्न पूछने हों तो वह पूछ सकता है। उस परसे श्री हाजी वजीर अलीने कहा कि भारतीयोंको मताधिकारके बजाय अपने साधारण अधिकारोंकी ज्यादा जरूरत है। उन्हें ट्राममें भी नहीं बैठने दिया जाता और बहुत अपमान होता है।

अध्यक्ष महोदयने जब विशेष स्पष्टीकरणके लिए कहा तो श्री गांधीने ट्रामका इतिहास सुनाया और कहा कि ट्रामसे ज्यादा दुःख देनेवाली बात यह है कि भारतीयोंको जमीन खरी-दनेका अधिकार बिलकुल नहीं है। इतना ही नहीं, उन्हें यदि धार्मिक कार्योंके लिए भी जमीनकी आवश्यकता हो, तो वह भी उनके नामपर नहीं चढ़ती। प्रिटोरिया, जोहानिसबर्ग, हीडेलबर्ग, वगैरह जगहोंपर जमीनें हैं, उन्हें नामपर चढ़ानेकी आपत्ति उठा ही करती है। भारतीयोंको काफिरोंकी बराबरीका मानना चाहते हैं, यह बहुत ही अन्याय है। ट्रान्सवालमें बहुतसे कानून हैं। उनमें कहीं भी 'वतनी' शब्दमें भारतीयोंका समावेश नहीं किया गया है।

फिर आयोगके अध्यक्षने कहा कि ट्रामका इतिहास और दूसरी बातें सब लिखकर सचिवके नाम भेज दीजिए, तब उसपर आयोग ध्यान देगा। इसके बाद शिष्टमण्डल विदा हुआ।

फिर लॉर्ड सैंडहर्स्ट, जो बम्बईके गवर्नर रहे थे, बाहर निकले और उन्होंने बम्बई वगैरहके बारेमें समाचार पूछकर कहा कि मुझे बम्बई बहुत पसन्द है। मेरी वहाँ फिर जानेकी इच्छा होती है।

आयोगके समक्ष पेश किया गया वक्तव्य अगले सप्ताह दूंगा।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २६-५-१९०६