पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/३६७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३३३
जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

शिलिंगका जुर्माना, और जुर्माना न देनेपर एक दिनकी कैंदकी सजा सुनाई। कंडक्टरने पाँच शिलिंग उसी वक्त दे दिये।

इस मामले में यह भी पता चला कि भारतीय [श्री कुवाडिया] को हरानेके लिए नगर-परिषदने ट्रामगाड़ी गोरोंके लिए है, ऐसा एक परवाना जारी किया था, और श्री फीथमने उसे बड़े जोश में आकर पेश किया था। लेकिन जैसी कि कहावत है, दूसरोंके लिए गड्ढा खोदनेवाला खुद ही उसमें गिरता है, इस मामलेमें नगर परिषद धोखा खा गई। जारी किया गया परवाना जिस दिन श्री कुवाडिया ट्राममें बैठने गये थे उसके चार दिन बाद जारी हुआ था। इसलिए जब श्री फीथमको इस गलतीका भान हुआ, तब वे शरमिन्दा हुए।

इस बार अखबारोंके संवाददाता हाजिर थे, इसलिए यहाँके सब अखबारोंमें लगभग पूरा विवरण छपा है। इस प्रकार भारतीयको विजय तो पूरी मिली, पर ऐसा लगता है कि नगर-परिषदने उसका फल हमारे हाथसे छीन लिया है। शुक्रवारको जितनी खुशी हुई, शनिवारको 'गवर्नमेंट गज़ट' देखनेपर उतना ही रंज हुआ। उस 'गजट' में जोहानिसबर्गकी नगरपालिकाकी ओरसे एक कानून छपा है। उसमें सिर्फ इतना कहा गया है कि नगरपालिकाने ट्रामके बारेमें जो कानून बनाये थे, वे रद कर दिये गये हैं। वैसे देखा जाये तो इस प्रकारके कानूनमें कोई दोष दिखाई नहीं देता। लेकिन इसका कानूनी अर्थ नीचे लिखे अनुसार होता है।

हमारी दलील यह थी कि जोहानिसबर्गकी नगरपालिकाके कानून चेचक-सम्बन्धी कानून के बाद बने हैं; और चूँकि चेचकवाले कानून उनके विरुद्ध हैं, इसलिए वे रद माने जायेंगे। लेकिन चूँकि अब नये कानूनोंको वापस ले लिया गया है, इसलिए यह दलील दी जा सकती है कि नगरपालिकाकी मान्यताके अनुसार चेचकवाले कानून फिर सजीव हो उठे हैं।

इसे खुला दगा कहना होगा। इसका नतीजा यह हुआ कि हमें फिरसे सारी लड़ाई लड़नी पड़ेगी; और वह बहुत मुश्किल और खर्चीली होगी। फिर भी अगर भारतीय जनताको ऐसी हार स्वीकार न करनी हो, तो लड़े बिना छुटकारा नहीं है।

यहाँकी नगर परिषद में श्री लेन नामक एक सदस्य हैं। उन्होंने कल नगर परिषद में ट्राम-वे समिति के अध्यक्षसे कुछ सवाल पूछे हैं। उनमें उन्होंने इसका आँकड़ा माँगा है कि नगर परिषदने ऐसे मुकदमे लड़कर नागरिकोंको कितने खर्चके गड्ढे में उतारा है और, यह सूचित किया है कि अगर नगर परिषदको अपनी इज्जतका थोड़ा भी खयाल हो, तो अब उसे भारतीयोंको नहीं सताना चाहिए।

अनुमतिपत्रके मामलेमें लॉर्ड सेल्बोर्नका जवाब

ब्रिटिश भारतीय संघके दूसरे पत्रका जवाब लॉर्ड सेल्बोर्नने दिया है। कह सकते हैं कि वह संक्षिप्त और अशिष्ट है। उसमें यह कहा गया है कि अनुमतिपत्रके बारेमें तत्काल वे अधिक कुछ नहीं कर सकते। इसका मतलब यह हुआ कि स्त्रियोंको भी अनुमतिपत्र लेने होंगे। फिर भी मैं मानता हूँ कि भारतीय कौम ऐसा कानून स्वीकार नहीं करेगी, और लॉर्ड महोदयके ऐसे विचार अमल में नहीं आ सकेंगे।

मलायी बस्ती

मलायी वस्तीको अपने कब्जे में कर लेनेकी जो सत्ता नगर परिषदको दी गई थी, उसके बारेमें बस्तीकी गुमटियोंके मालिकोंने लॉर्ड सेल्बोर्नके पास शिष्टमण्डल ले जानेका विचार किया है।