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३४७. चीनियोंको वापस भेजनेका सवाल

हम अपने पाठकोंको यह बता चुके हैं[१] कि ब्रिटिश सरकारने चीनियोंको वापस उनके देश भेजनेका सवाल अपने हाथमें ले लिया है और वह उसके लिए खर्च देनेको भी तैयार हो गई है। इसके कारण ट्रान्सवालमें बहुत खलबली मची है। और गोरे खान-मालिक इस बातकी व्यवस्था करनेमें लगे हैं कि चीनियोंको वापस भेजनेसे रोकनेके लिए एक शिष्टमण्डल विलायत भेजा जाये। जनरल बोधाने चीनियोंके जुल्मोंको देखकर सरकारके पास यह शिकायत भेजी है। कि चीनी लोग किसानोंपर जुल्म करनेसे बाज नहीं आते; वे और अधिक क्रूर बनते जा रहे हैं। सवाल यह खड़ा होता है कि वे कबतक इस तरह जुल्म करते रहेंगे। अगर ट्रान्सवालकी सरकार और खानवाले इन लोगोंको इनके अत्याचारपूर्ण व्यवहारसे नहीं रोकेंगे तो बोअर लोग ब्रिटिश सरकारको इसकी खबर करेंगे। वे यह भी कहते हैं कि अगर सरकार इस मामले में कोई सन्तोषजनक जवाब नहीं देगी, तो वे चीनियोंको वापस भिजवानेकी बात कहनेके लिए ब्रिटिश सरकारके पास शिष्टमण्डल भेजेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १९-५-१९०६
 

३४८. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

[मई १८, १९०६ के बाद[२]]

ट्रामका परीक्षात्मक मुकदमा

पिछले शुक्रवार, १८ तारीखको, मजिस्ट्रेट श्री क्रॉसकी अदालतमें जोहानिसबर्गकी नगर- पालिकाके विरुद्ध श्री इब्राहीम सालेजी कुवाडियाका मुकदमा चला था। श्री कुवाडियाने बयान देते हुए कहा कि वे ब्रिटिश भारतीय संघके कोषाध्यक्ष हैं। ७ अप्रैलको जब वे बिजलीकी ट्रामपर चढ़ रहे थे, कंडक्टरने उन्हें रोक दिया। नगरपालिकाकी ओरसे कंडक्टरने बयान दिया, और नगरपालिकाका कथन पूरा हो गया। इस बार नगरपालिकाकी तरफसे बैरिस्टर श्री फीथम खड़े हुए थे और श्री कुवाडियाकी तरफसे धर्मके वकील श्री ब्लेन, और उनको सलाह देनेके लिए श्री गांधी हाजिर थे। श्री फीथमने दलील देते हुए कहा कि सन् १८८७ में बोअर सरकारने चेचककी बीमारीके मौकेपर कुछ कानून जारी किये थे। उन कानूनोंके अनुसार काले लोग, अगर वे गोरोंके नौकर न हों तो, गोरोंके साथ नहीं बैठ सकते। वे कानून आज भी कायम हैं, इसलिए भारतीय ट्राममें नहीं बैठ सकते। मजिस्ट्रेट श्री क्रॉसने यह दलील नहीं मानी, और जोहानिसबर्गकी नगरपालिकाके गाड़ियोंके लिए बनाये गये नियमोंके आधारपर श्री कुवाडियाको ट्रामगाड़ीका उपयोग करनेका हक है, यह फैसला देते हुए उन्होंने कंडक्टरको पाँच

 
  1. देखिए "जोहानिसबर्गकी चिट्टी", पृष्ठ ३१५-६।
  2. मूल पत्रमें तिथि १४-५-१९०६ है, जो गलत जान पड़ती है। नगरपालिकाके विरुद्ध श्री कुवाडिया द्वारा दायर किये गये मुकदमेकी १८ मईको हुई सुनवाईके उल्लेखसे यह स्पष्ट है कि पत्र उस दिन, अथवा उसके बादकी तारीखको लिखा गया। अन्तके कुछ अनुच्छेदों में मई २२, १९०६ की तारीख पड़ी है।