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३४३. पॉचेफस्ट्रूम और क्लार्क्सडॉर्प[१]

पॉचेफस्ट्रममें फिलहाल व्यापार मन्दा दिखाई पड़ता है। वहाँके भारतीयोंको खास दिक्कत है बग्घीकी और सार्वजनिक बगीचोंमें न जा सकनेकी। भारतीयोंके लिए बग्घी तत्काल प्राप्त करना मुश्किल होता है। इसका कोई कानूनी उपाय हो सकनेकी कम सम्भावना है। क्योंकि, पहले जब यह घटना घटी थी उस समय पॉचेफस्ट्रमकी नगरपालिकाने जो उपनियम बनाया था, वह अब भी लागू है। बगीचेवाले मामलेका इलाज तो भारतीयोंके हाथमें ही है। हमें बगीचे में जानेसे रोका नहीं जा सकता। इस विषय में मजिस्ट्रेटकी अदालत में ही मुकदमा दायर किया जाये, तो चल सकता है।

पाँचेफस्ट्रूमके भारतीयोंने अंग्रेज व्यापारियोंसे मेलजोल करके दुकानोंके मामले में गोरों जैसा कुछ प्रबन्ध किया हो, तो जान पड़ता है, उसे उन्होंने तोड़ दिया है। यह ठीक नहीं हुआ। जिस तरह शुरू किया था, उसी तरह पार भी लगाना चाहिए था। गोरे हमसे सीधा व्यवहार नहीं करते तो हम भी सीधा व्यवहार न करें, ऐसा नहीं होना चाहिए।

क्लार्क्सडॉर्पे और पॉचेफस्ट्रम दोनोंकी तुलना की जाये तो क्लार्क्सडॉपके भारतीय भण्डार बढ़िया हैं। क्लार्क्सडॉर्पके भण्डारोंकी रचना सुन्दर दिखती है, और बाहरका दिखावा भी सुहावना है। कोई वजह नहीं कि पॉचेफस्ट्रम में भी ऐसा क्यों न हो। क्लार्क्सडॉर्प और पॉचेफस्ट्रूम दोनों जगहोंके भारतीय भण्डार सुघड़तामैं और दूसरी तरहसे बहुत-कुछ यूरोपीय भण्डारों-जैसे ही पाये गये हैं। लेकिन भण्डारोंके पीछेके अहाते में और रहनेकी स्थिति में हेरफेर करना जरूरी है। अहाते में रहने के लिए जो कोठरियाँ बनी हैं वे अधिक साफ और प्रशस्त होनी चाहिए; और स्नानघर आदि स्थान बिलकुल साफ रहने चाहिए।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १९-५-१९०६
 

३४४. हमारे अवगुण

हमारे जोहानिसबर्गके संवाददाताने भारतीयोंकी गन्दगीकी जो खबरें भेजी हैं, वे सबके लिए विचारणीय हैं। अगर पिछले बीस सालोंके अखवारोंको कोई आज देखे, तो पता चलेगा कि भार तीयोंके विरुद्ध सबसे बड़ा आरोप गन्दगीका है। इसमें गोरोंने जितनी बातें बढ़ा-चढ़ा कर कही हैं, उन सबका जवाब हम दे चुके हैं। लेकिन हमारे जोहानिसबर्गके संवाददाताने जिस मामले की ओर हमारे पाठकोंका ध्यान खींचा है, वह सचमुच ही हमें नीचा दिखानेवाला है। जिस कोठरी में सोना, उसीमें शाक-सब्जी रखना, उसी में रोटी रखना — ये बहुत भयंकर बातें हैं। अदालतने इसपर जो सजा दी है, उसके खिलाफ कुछ कहनेको नहीं रहता। जिस आदमीने यहगुनाह किया है, उसने अनजाने ऐसा किया है, सो भी नहीं कहा जा सकता। हम ऐसी बातोंकी ओर दक्षिण आफ्रिका के भारतीयोंका ध्यान बार-बार खींचना चाहते हैं। असल में ऐसी गन्दगीका उपाय हमारे ही हाथों होना चाहिए। हम खुद ऐसे गुनाहोंसे दूर रहें, इतना ही काफी नहीं है, बल्कि हमारा

 
  1. यह "हमारे विशेष प्रतिनिधिकी यात्रापर" आधारित था।