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६. सिंगापुरमें चीनी और भारतीय

सिंगापुर जितना हमारे नजदीक है उतना ही चीनियोंके नजदीक भी कहा जा सकता है। उस मुल्कमें चीनियोंको जितनी सुविधाएँ है उतनी ही भारतीयोंको भी है। फिर भी हम लोग सिंगापुरमें चीनियोंका मुकाबला नहीं कर पाते। बहुत-से चीनी सरकारी नौकरीमें हैं, सरकारी निर्माण विभागमें हैं, ठेकेदार है, और बहुत सम्पन्न हैं। कुछ तो मोटरें भी रखते हैं । सन् १९०० में २,००,९४७, सन् १९०१ में १,७८,७७८, सन् १९०२ में २,०७,१५६ और सन् १९०३ में २,२०,३२१ चीनी सिंगापुरके इलाके में गये, जब कि भारतीय हर साल सिर्फ २१,००० के हिसाबसे ही गये । इन भारतीयोंमें अधिकतर मद्रासी थे। इस उदाहरणसे ज्ञात होता है कि हम लोगोंको बाहरके देशोंमें जाकर अभी कितना काम करना बाकी है। हमारे लिए यह बहुत शर्मकी बात है कि हम लोग चीनियोंकी बराबरी नहीं कर सकते।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १-७-१९०५

७. पत्र: उच्चायुक्तके सचिवको

जोहानिसबर्ग

जुलाई १, १९०५

सेवामें
निजी सचिव
परमश्रेष्ठ उच्चायुक्त
जोहानिसबर्ग
महोदय,

रंगदार व्यक्तियोंके बारेमें ऑरेंज रिवर कालोनीके परमश्रेष्ठ लेफ्टिनेंट गवर्नर द्वारा समय- समयपर स्वीकृत उपधाराओंके सम्बन्धमें उक्त कालोनीकी सरकार और मेरे संघके बीच में जो पत्रव्यवहार हुआ है, उसकी प्रतियां मैं इस पत्रके साथ संलग्न कर रहा हूँ। मेरा संघ परम- श्रेष्ठका ध्यान इस तथ्यकी ओर आकर्षित करनेकी धृष्टता करता है कि मेरे पत्रमें किसी नये विधानकी मांग नहीं की गई है। मेरे संघकी नम्र रायमें लेफ्टिनेंट गवर्नरको जो अधिकार प्राप्त है उनके बलपर वे ऐसी उपधाराओंका निषेध कर सकते है जो ब्रिटिश परम्पराओं और अधिकार- पत्र (लैटर्स पेटेंट) के विरोध में हों। मेरे संघको सूचित किया गया है कि नगरपालिकाओंको जो कानून बनानेकी आज्ञा मिली है उसे यदि विधान परिषद स्वीकार कर ले तो फिर महामहिम सम्राटकी स्वीकृति उसपर प्राप्त करनी होगी। मेरे संघका यह खयाल भी है कि स्थानापन्न उपनिवेश-सचिव द्वारा लिखित पत्रका अन्तिम अनुच्छेद मेरे संघ द्वारा की गई शिकायतका औचित्य

१. देखिए, “ पत्र: उपनिवेश-सचिवको", खण्ड ४, पृष्ठ ४३३-४ । सरकारने इसके उत्तरमें सूचित किया कि उपनिवेशमें नगरपालिकाअंकि अधिकार सीमित करनेके उद्देश्य से कानून बनानेका कोई विचार नहीं है।