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रंगदार लोगोंका प्रार्थनापत्र

साथ कर सकते हैं कि अनुमतिपत्र देनेका काम "सभी परिस्थितियोंमें प्रार्थियोंकी सुविधाका यथासंभव खयाल रखते हुए" किया जा रहा है। जबतक आयुकी सीमा फिर वही नहीं कर दी जाती, जबतक भारतीय स्त्रियाँ अनावश्यक अपमानसे मुक्त नहीं की जातीं, और जबतक भारतीय शरणार्थियोंके प्रार्थनापत्रोंपर, मिलते ही, तुरन्त विचार नहीं किया जाता तबतक हमारी विनम्र सम्मतिमें, यदि परमश्रेष्ठ तनिक भी न्याय दिखायें तो यह नहीं कह सकते कि अनुमतिपत्र सम्बन्धी नियम किसी भी अंशमें औचित्यके साथ लागू किये जा रहे हैं। जिन अधिकारियोंको कानूनपर अमल कराना है, हम उनकी कठिनाइयोंको भली भाँति समझ सकते हैं, परन्तु यदि उनकी तादाद कम है तो सरकारका कर्त्तव्य है कि वह कमीको पूरा करे जिससे प्रार्थनापत्रोंपर विचार करनेमें विलम्ब न हो। कर्मचारियोंकी इस तरहकी बढ़ती अस्थायी ही होगी, क्योंकि कभी-न-कभी शरणार्थियोंके प्रार्थनापत्र समाप्त हो ही जायेंगे। कार्यालयमें जो काम जमा हो गया है यदि उसको निबटाना है तो कुछ और आदमी रखकर उस जमा कामको निबटानेकी व्यवस्था क्यों नहीं की जाती?

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १२-५-१९०६
 

३३६. रंगदार लोगोंका प्रार्थनापत्र

ट्रान्सवाल और ऑरेंज रिवर कालोनीका जो नया विधान बन रहा है, उसके सम्बन्धमें रंगदार लोगोंकी निगरानी समितिने ब्रिटिश लोकसभाको भेजनेके लिए एक प्रार्थनापत्र तैयार किया है। जनताको यह नहीं बताया गया है कि आफ्रिकी राजनीतिक संघने सम्राट सप्तम एडवर्डको जो प्रार्थनापत्र[१] भेजा था, यह उसीके सिलसिले में है या यह कोई अलग और स्वतन्त्र कार्रवाई है। कुछ भी हो, दोनों प्रार्थनापत्रों में लगभग समान हितोंकी हिमायत है। एकमात्र अन्तर यह है कि जहाँ सम्राटको भेजा गया प्रार्थनापत्र वतनी लोगोंके परे अन्य रंगदार लोगोंके सम्बन्धमें है, वहाँ वर्तमान प्रार्थनापत्र में वतनी लोग भी शामिल कर लिये गये जान पड़ते हैं। इसमें सन्देह नहीं कि अगर यहाँ संघ-राज्य बनना है और ब्रिटिश झंडेके अधीन रहना है तो अन्ततोगत्वा दक्षिण आफ्रिकाको स्वर्गीय श्री रोड्स[२] द्वारा बताई गई नीति ही अपनानी होगी। परन्तु श्री चंचिलने जो बात कई बार कही है, उसको देखते हुए, प्रार्थियोंकी प्रार्थनाको स्वीकार करना सम्भव होगा इसमें हमें सन्देह है — यद्यपि दोनों प्रार्थनापत्रोंसे भलाई ही हो सकती है क्योंकि उनसे उत्तरदायी शासनके अन्तर्गत दोनों उपनिवेशोंकी संसदोंके अधिवेशन होते ही इस विषयपर विचार करनेका रास्ता साफ हो जायेगा।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १२-५-१९०६
 
  1. देखिए "रंगदार लोगोंका प्रार्थनापत्र," पृष्ठ २५१-२।
  2. सेसिल रोड्स १८९० से १९०६ तक केपके प्रधानमंत्री थे। उनकी नीति थी कि डच और ब्रिटिश लोगोंको मिलाकर साम्राज्य के अन्तर्गत स्वशासित दक्षिण आफ्रिकी संघ राज्य बनाया जाये और धीरे-धीरे उसकी सीमाओं में वतन प्रदेशोंको भी मिलाया जाये। साम्राज्यके अन्तर्गत स्थानीय स्वायत्त शासनमें उनका विश्वास था।