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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं। इसलिए हमारे खयालसे प्रत्येक उपनिवेशीका विशेष उद्देश्य होना चाहिए कि वह भारतीय समाजके इस प्रस्तावका समर्थन करे और इस प्रकार अपने विवेक एवं दूरदर्शिताका परिचय दे, क्योंकि यह गम्भीरतापूर्वक नहीं कहा जा सकता कि युद्धके लिए एक लाख पूर्णतः वफादार और अच्छे प्रशिक्षणके योग्य भारतीयोंके उपयोगसे आँख मूंदकर इनकार करनेमें कोई बुद्धिमानी या नीति-कुशलता है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १२-५-१९०६
 

३३५. भारतीयोंके अनुमतिपत्र

अनुमतिपत्र अध्यादेशके अमलके सम्बन्ध में ब्रिटिश भारतीय संघने जो आवेदनपत्र भेजा था, अब उसका उत्तर लॉर्ड सेल्बोर्नने दे दिया है। परमश्रेष्ठके उत्तर में जो तथ्य एवं तर्क दिये गये हैं, उनका निराकरण करते हुए संघने फिर एक पत्र भेजा है। हम यह कहे बिना नहीं रह सकते कि लॉर्ड सेल्बोर्नका उत्तर अत्यन्त निराशाजनक है। संघने अपने उत्तरमें[१] श्री मंगाके मामलेकी विशद चर्चा की है। इसलिए श्री मंगाकी अनुमतिपत्रको दर्खास्तको अस्वीकार करनेका जो विचित्र कारण दिया गया है, उसपर हम इससे ज्यादा कुछ कहने की आवश्यकता नहीं समझते।

लॉर्ड सेल्बोर्नके पत्रसे यह प्रत्यक्ष है कि उम्रकी सीमा मनमाने तौरपर सोलहसे बारह कर दी गई है, क्योंकि जैसा संघने कहा है, कुछ लोगों द्वारा नियमोंका उल्लंघन उम्रकी सीमा घटानेका कोई कारण नहीं हो सकता। जो स्त्रियाँ अपने पतियोंके साथ आती हैं उनके लिए अलग अनुमतिपत्र लेना आवश्यक करके भारतीयोंकी भावनाकी बिलकुल उपेक्षा की गई है। यह एक नई बात है जिसका कतई कोई औचित्य नहीं है। एशियाई विरोधी दलने भारतीय स्त्रियोंकी बाढ़के विषयमें एक शब्द भी नहीं कहा है। जैसा सुविदित है, ट्रान्सवाल में बहुत कम भारतीय स्त्रियाँ हैं, और वे किसी प्रकार व्यापारमें प्रतियोगिता नहीं करतीं। उनका काम केवल अपनी घर-गृहस्थीकी व्यवस्था तक सीमित है। इसलिए हमें स्पष्ट रूपसे स्वीकार करना पड़ता है कि लॉर्ड सेल्बोर्नने पत्नियोंके लिए अलग अनुमतिपत्र लेनेके बारेमें जो उत्तर दिया है उसके लिए हम तैयार नहीं थे। क्या यह कोई नई बात मालूम हुई है कि "शान्ति-रक्षा अध्यादेश के अनुसार आयु और लिंगका विचार किये बिना ट्रान्सवालमें सभीको अनुमतिपत्र लेना जरूरी है?" अगर यह कोई नई बात नहीं मालूम हुई है तो अभीतक भारतीय स्त्रियोंसे कोई अनुमतिपत्र क्यों नहीं माँगा जाता था? और भारतीय बच्चोंको अभी कुछ समय पहले तक अनुमतिपत्रोंकी छूट क्यों दी गई थी?

और जैसा कि संघने बताया है, शान्ति-रक्षा अध्यादेश सबपर लागू नहीं है, क्योंकि जब यूरोपीय महिलाएँ अपने पतियों और १६ सालसे कम उम्र के बच्चे, अपने माता-पिताओंके साथ यात्रा करते है तो वे अनुमतिपत्र लेने या साथ रखनेसे मुक्त होते हैं। परमश्रेष्ठने भारतीय महिलाओंके विषय में भारतीयोंकी विशेष भावप्रवणताका भी खयाल नहीं किया है। हमें यह कहने में जरा भी हिचक नहीं है कि यह कानून अनुचित, अपमानजनक और बिलकुल अनावश्यक है। अगर इसको लागू किया गया तो इससे ऐसा क्षोभ पैदा होगा जिसको दूर करना कठिन होगा। दरअसल यह आश्चर्य है कि इन नये कायदोंको जारी करनेके बाद भी परमश्रेष्ठ अपने उत्तरकी समाप्ति इन शब्दोंके

 
  1. देखिए "पत्र : लॉर्ड सेल्बोर्नको" पृष्ठ ३१९-३२०।