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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दिया गया था उसे बतानेसे भी संघको इनकार कर दिया गया। मेरे संघको तो पहली बार आपके पत्रसे ही इसका पता चला। तथ्योंके उक्त विवरणसे पता चलता है कि डेलागोआ-बेके रिश्तेदारके वर्णनमें फेरफार अस्वीकृतिका कारण नहीं बन सकता, क्योंकि जब निर्णयकी घोषणा हुई तब चाचाको पिता बतानेकी भूलका पता नहीं लग पाया था। मेरे संघका यह निवेदन है कि अस्थायी अनुमतिपत्र या जिसे 'अभ्यागत पास' कह सकते हैं, देनेमें काफी ढिलाईसे काम लिया जाना चाहिए और हर हालत में प्रार्थियोंको यह भी बता दिया जाना चाहिए कि उनके प्रार्थनापत्र क्यों नामंजूर हुए हैं। इस मामलेमें हुए पत्र-व्यवहारकी जो प्रति मेरे संघने प्राप्त की है, उसे इसके साथ नत्थी करता हूँ।[१]

एशियाई नाबालिग पुरुषोंकी आयु-सीमाके बारेमें मेरे संघका सादर निवेदन है कि आपके पत्र में जिन बुराइयोंका जिक्र किया गया है, वे आयुकी सीमा घटा देनेसे दूर नहीं होंगी। जो धोखा देनेका इरादा रखते हैं वे तो धोखा देते ही रहेंगे, फिर चाहे आयु-सीमा सोलहकी हो या बारहकी। मानव-स्वातन्त्र्यको बाँधनेवाले कानूनोंका दुरुपयोग तो अनिवार्य है, किन्तु मेरा संघ सादर निवेदन करता है कि ये बुराइयाँ भी कोई विस्तृत पैमानेपर नहीं हैं और इनसे सदैव बचाव किया जा सकता है। क्या मैं यह कहनेका और साहस कर सकता हूँ कि आयु-सीमा में कमी करना अपराधी व्यक्तियों द्वारा किये गये अपराधोंके लिए निर्दोष व्यक्तियोंको दण्ड देना है।

बिना किसी आयु या यौन-भेदके सभी व्यक्तियोंके लिए अनुमतिपत्र लेनेकी शर्त के बारेमें मेरा संघ यह समझता है कि यह सिर्फ ब्रिटिश भारतीयों या एशियाइयोंपर ही लागू होती है, क्योंकि मेरे संघको इस बातकी जानकारी है कि अनेक यूरोपीय बच्चों और स्त्रियोंने बिना किसी अनुमतिपत्रके इस देशमें प्रवेश किया है। मेरे संघका निवेदन है कि पत्नियों और पाँच वर्ष तक के यानी गोदके बच्चोंके लिए अनुमतिपत्र लेकर चलने की शर्तकी कोई आवश्यकता नहीं है. और इससे बहुत अधिक सन्ताप ही पैदा होनेवाला है। इसलिए मेरा संघ सादर एक बार फिर परमश्रेष्ठ द्वारा सहानुभूतिपूर्ण हस्तक्षेपके लिए अनुरोध करता है।

आपका आज्ञाकारी सेवक,

अब्दुल गनी

अध्यक्ष

ब्रिटिश भारतीय संघ

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १२-५-१९०६
 
  1. ये यहाँ नहीं दिये जा रहे हैं।