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मैक्सिम गोर्की

उन्होंने यह बता दिया है कि बड़े-बड़े वेतन पानेवाले लोग प्रायः सभी यूरोपीय हैं; और जो नई जगहें निकली है, वे भी सब यूरोपीयोंको ही मिली हैं।

[गुजरातोसे]
इंडियन ओपिनियन, १-७-१९०५

५. मैक्सिम गोर्की[१]

रूसके लोगों और हमारे देशके लोगोंके बीच एक हदतक तुलना की जा सकती है। जैसे हम गरीब हैं वैसे ही रूसकी जनता भी गरीब है। जैसे हमें राजकाज चलानेका कुछ भी अधिकार नहीं है और चुपचाप कर चुकाने पड़ते हैं, उसी प्रकार रूसके लोगोंको भी करना पड़ता है। रूसमें ऐसे कष्टोंको देखकर कुछ अत्यन्त वीर पुरुष सामने आ जाते हैं। कुछ समय पहले रूसमें विद्रोह हुआ। उसमें जिन्होंने मुख्य भाग लिया उनमें मैक्सिम गोर्की भी थे। वे बहुत गरीबीमें पले थे। शुरूमें वे एक मोचीके यहां नौकरीपर रहे। वहाँसे उनको छुट्टी दे दी गई। फिर उन्होंने कुछ समय तक सिपाहीगीरी की। उस समय उन्हें अध्ययन करनेकी तीव्र अभिलाषा हुई। लेकिन गरीब होनेके कारण किसी अच्छी पाठशालामें प्रवेश नहीं मिल सका । उसके बाद उन्होंने एक वकीलके यहाँ नौकरी की और अन्तमें एक नानबाईके यहाँ फेरीदारका काम किया। इस बीच सारे समय उन्होंने निजी परिश्रमसे शिक्षा प्राप्त करनेका कार्य जारी रखा। उन्होंने १८९२ में अपनी पहली पुस्तक लिखी जो इतनी रोचक थी कि उससे उनकी ख्याति तुरन्त फैल गई। उसके बाद उन्होंने बहुत-सी रचनाएं की है। इन सबके पीछे उनका एक ही उद्देश्य था कि लोगोंको उनके ऊपर होनेवाले अत्याचारोंके खिलाफ उकसाया जाये, सत्ताधीशोंके कान खड़े किये जायें और यथासम्भव जनताकी सेवा की जाये। वे पैसा कमानेको कुछ भी परवाह न करके ऐसे तीखे लेख लिखते हैं कि उनपर अधिकारियोंकी कड़ी निगाह रहती है। वे लोकसेवा करते हुए जेल भी हो आये हैं, किन्तु इसे अपना सम्मान समझते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यूरोपमें लोगोंके हकोंकी रक्षा करनेवाला मैक्सिम गोर्कीके समान कोई दूसरा लेखक नहीं है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १-७-१९०५

१. अलेक्सी मैक्सीमोविच पीशकोव गोर्की (१८६८-१९३६): रूसी उपन्यासकार और लेखक ।

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