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३२३. नेटाल भूमि-विधेयक

नेटालकी संसद में "भूमि धारा विधेयक" के रूपमें दूरगामी महत्त्वका एक विधेयक विचारार्थ प्रस्तुत किया जायेगा। यह नेटाल सरकारका इस विधेयकको संसदसे पास करानेका दूसरा प्रयत्न है। जहाँतक भाड़ेदारोंकी हैसियतसे भूमिपर कब्जेका सम्बन्ध है, भारतीय समाजके लिए सबसे महत्त्वकी धारा वह है जिसके द्वारा लाभदायक कब्जेका अर्थ यूरोपीयों तक सीमित कर दिया गया है। इस तरह जो भूमि भारतीय भाड़ेदारोंके कब्जे में होगी उसका कब्जा अलाभ-दायक कब्जा माना जायेगा और फलस्वरूप उसपर भारी कर लगाया जा सकेगा। यह बात तो सभीने स्वीकार की है कि भारतीयोंमें अन्य दोष भले ही हों, परन्तु वे काहिल नहीं हैं। वे पैदाइशी खेतिहर हैं। सभी मानते हैं कि उन्होंने इस उपनिवेशकी कुछ निकृष्टतम भूमि खेतीके योग्य बनाई है। उन्होंने घने जंगलोंको बागोंके रूपमें बदल दिया है और अपनी उत्पादन शक्तिसे नेटालके गरीब गृहस्थों तक बागोंकी पैदावार सरलतापूर्वक पहुँचाना सम्भव कर दिया है। क्या उनपर उनके गुणोंके कारण ही कर लगाया जायेगा? क्या सरकारके इस कार्यसे यूरोपीयोंके कब्जेकी जमीनोंमें वृद्धि होगी? हमें इसमें सन्देह है। और अगर हमारा संदेह युक्ति-संगत है तो हम यह निर्विवाद रूपसे कह सकते हैं कि सरकार लाभदायक कब्जा शब्द-समुच्चयकी उल्लिखित परिभाषाको कायम रखनेका आग्रह करके 'न खाय, न खाने दे' की नीतिका अनुसरण करेगी। सरकार ऐसे कानूनोंसे नेटाली भारतीयोंके सवालको हल न कर सकेगी। मन्त्रियों और लोकमत निर्माता नेताओंका कर्त्तव्य है कि वे समूचे सवालपर गम्भीरता-पूर्वक और शान्तिपूर्वक विचार करें और उसको अभी हालके आवेशपूर्ण भारतीय-विरोधी कानूनके बजाय निपुणतासे हल करें।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ५-५-१९०६
 

३२४. केपके विक्रेता-परवाने

अप्रैल २० के 'केप गवर्नमेंट गज़ट' में सामान्य वस्तु विक्रेताओंके व्यापारको नियमित करनेके लिए एक विधेयकका मसविदा प्रकाशित किया गया है। हम बिना हिचकिचाहट इस कदमका स्वागत करते हैं। यह मान लेनेपर कि व्यापारिक परवाने अन्धाधुन्ध जारी करनेपर कुछ प्रतिबन्ध लगाना जरूरी है, प्रस्तुत विधेयक अनिन्द्य है। इससे निहित अधिकारोंकी रक्षा होती है, और इसमें नये परवानोंके प्राथियोंके साथ अन्याय न होने देनेकी उचित सावधानी रखी गई है। इससे यह निर्णय करनेका अन्तिम अधिकार लोगोंके हाथोंमें आ जाता है कि वे अपने बीचमें एक नया व्यापारी लायें या न लायें। प्रस्तुत विधेयक वर्तमान व्यापारियोंकी अनुचित प्रतियोगितासे रक्षा करता है और साथ ही इससे उनको नये उद्योगोंके लिए उचित सुविधाएँ भी मिलती हैं। यह नेटाल विक्रेता-परवाना अधिनियमके समस्त दोषोंसे मुक्त है। इससे निहित अधिकारोंकी सुरक्षाका पूरा ध्यान रखते हुए नेटालके कानूनसे जो कुछ कभी प्राप्त हो सकता था, वह सब प्राप्त हो जाता है। हमें आशा है कि नेटाल-सरकार इस कानूनका