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चीनमें हलचल


एक ओरसे हम कष्ट देखते हैं, तो दूसरी ओर हम एक हो जाते हैं। यदि अपने कष्टोंके परिणाम- स्वरूप हम इस तरह एक हों तो क्षणभर के लिए हम यह कह सकते हैं कि कष्टका आना अच्छा। हम हिम्मतके साथ एक होकर दुनियाके हर हिस्सेमें लड़ेंगे, तो हमारे कष्ट दूर होंगे, हम उन्हें भूल जायेंगे और एक राष्ट्र बनेंगे।

इस सभा के सभापतिने अपने भाषण में यह कहा है कि हमें दक्षिण आफ्रिकामें गोरोंके बराबर अधिकार हैं। यदि श्री जीवनजी इस पत्रको पढ़ते हैं तो उन्हें हमारे दुःखोंका पता होना चाहिए। हमें दुःखके साथ उन्हें यह जताना पड़ रहा है कि हमारी राजनीतिक स्थिति हमारे मोम्बासाके भाइयोंकी तुलनामें खराब है। नेटालमें भारतीयोंको जमीन मिल सकती है, किन्तु वहाँ उन्हें दूसरी तकलीफें हैं। और भारतीयोंसे जमीनका हक छीन लेनेकी तैयारी भी चल रही है। ट्रान्सवालमें अथवा ऑरेंज रिवर कालोनीमें आज भी जमीन नहीं मिलती।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-४-१९०६
 

३१७. नेटालका विद्रोह और नेटालको मदद

बम्बाटा अभी आजाद है। कहा जाता है कि उसके साथ ३०० आदमी हैं। उसके साथकी लड़ाईके बारेमें कई भाषण हो चुके हैं। नेटालके मंत्रियोंने कहा है कि वे विलायतसे मदद नहीं मँगवायेंगे। तारकी खबर है कि जोहानिसबर्ग में एक बहुत बड़ी सभा हुई है। उससे जान पड़ता है कि वहाँके लोग नेटालको पर्याप्त मदद देनेके लिए तैयार हैं। इस सबका मतलब यह होता है कि नेटालकी ताकत और स्वतंत्रता बढ़ेगी। ऐसे अवसरपर भारतीयोंने सरकारको जो मदद भेजी है वह मुनासिव है, और अगर मददका प्रस्ताव न किया जाता, तो बदनामी होती। जिन्होंने लड़ाईपर जानेके लिए नाम लिखाये हैं, उन्होंने बहुत उत्साह दिखाया है। उनमेंसे कई तो उपनिवेशमें जन्मे हैं। हमारे लिए यह सन्तोषकी बात है कि वे दूसरे भारतीयोंके साथ सम्मिलित होते हैं। नेताओंका कर्त्तव्य है कि वे उन्हें आगे बढ़नेके लिए प्रोत्साहित करें।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-४-१९०६
 

३१८. चीनमें हलचल

'टाइम्स' का संवाददाता लिखता है कि चीनी दिनपर-दिन ज्यादा निरंकुश होते जा रहे हैं। वे गोरोंका सामना करते हैं। चीनी अखबार बहुत तीखे लेख लिखते हैं, और जापानी लेखक इसमें मदद करते हैं। उदार दलवालोंने ट्रान्सवालकी खानोंके चीनियोंके बारेमें जो भाषण किये हैं, उनका असर चीनियोंपर और भी बुरा हुआ है, और वे गोरोंके विरुद्ध अधिक भड़क गये हैं।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-४-१९०६