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एक भारतीय प्रस्ताव

भारतीयोंपर लगी हुई हैं। कोई औपचारिक कार्यक्रम नहीं बनाया गया है, किन्तु वे यहाँ तबतक रहेंगे जबतक वे आयोगकी[१] गतिविधियोंको देख नहीं लेते। यह आयोग इसी ७ तारीखको रवाना हुआ है। यदि आवश्यक होगा तो वे स्वयं आयोगके सम्मुख पेश होंगे।

[अंग्रेजीसे]
नेटाल मर्क्युरी, २६-४-१९०६
 

३१२. एक भारतीय प्रस्ताव

हाल ही में नेटाल भारतीय कांग्रेसके तत्त्वावधानमें जो सभा हुई थी उसको वतनियोंके विद्रोहके सिलसिले में भारतीयोंकी सेवाएँ समर्पित करनेका प्रस्ताव[२] पास करनेपर बधाई दी जानी चाहिए। स्थानीय अखबारोंमें अनेक संवाददाताओंने यह चिन्ता व्यक्त की थी कि यदि विद्रोह फैला तो उनको स्वयं अपनी और भारतीयों दोनोंकी रक्षाका भार वहन करना होगा। यह प्रस्ताव उसका पूरा जवाब है। पिछले मंगलवारको कांग्रेस हालमें जो भारतीय इकट्ठे हुए थे उन्होंने प्रकट कर दिया है कि उनमें विवेक प्रचुर मात्रामें मौजूद है और जहाँ समस्त समाजकी, जिसके वे भी एक अंग हैं, सामूहिक भलाईका सवाल उपस्थित हो, वहाँ वे अपनी निजी शिकायतोंको भुला सकते हैं। हमें विश्वास है कि सरकार उनकी सेवाएँ स्वीकार करनेमें आनाकानी न करेगी और भारतीय समाजको एक बार फिर अपनी योग्यता सिद्ध करनेका मौका देगी।

परन्तु यह प्रस्ताव स्वीकार हो या न हो, इससे इस बातका महत्व बहुत स्पष्ट हो जाता है कि भारतीयोंको पहलेसे उचित प्रशिक्षण देकर उनकी उपनिवेशके बचाव में उचित भाग लेनेकी इच्छाका सदुपयोग किया जाना चाहिए। हम कई बार कह चुके हैं कि अतिरिक्त रक्षा कार्योंके लिए भारतीय समाज जो मूल्यवान सहायता दे सकता है उसका उपयोग न करना अत्यन्त मूर्खताकी बात है। अगर वर्तमान भारतीय आबादीको उपनिवेशसे निकालना सम्भव नहीं है तो उसको उपयुक्त सैनिक शिक्षण देना निस्सन्देह सामान्य समझदारीकी बात है। एक भावपूर्ण भारतीय कहावत है: "आग लगे खोदे कुआँ; कैसे निकसे तोय।" फिर भारतीय भी चाहे वे कितने ही इच्छुक और सामर्थ्यवान क्यों न हों, आप उनको एकदम खाई खोदनेवाले कुशल दलके रूपमें भी तैयार नहीं कर सकते। क्या श्री बॉट और उनके साथी मन्त्री इस मामलेमें अपने कर्त्तव्यके प्रति सजग होंगे?[३]

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-४-१९०६
 
  1. कदाचित् ट्रान्सवालको उत्तरदायी शासन देनेके प्रश्नपर विचारके लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा सर वेस्ट रिजवेकी अध्यक्षता में नियुक्त संविधान समिति। शिष्टमण्डल समितिले २९ मईको मिला था; देखिए "वक्तव्य : संविधान समितिकी सेवामें प्रस्तुत", पृ४ ३४५-५४।
  2. देखिए "भाषण : कांग्रेसकी सभाएँ", पृष्ठ ३०१।
  3. देखिए "भारतीय स्वयंसेवक", पृष्ठ २६१।