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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तो निकालता ही रहूँगा। लेकिन यह मैंने कभी नहीं माना कि भारतीय समाजकी ओरसे जरा भी प्रोत्साहन नहीं मिलेगा। इसलिए मैं अब भी आशा लिए हूँ कि पत्रमें आवश्यक सहायता मिलेगी।

पत्रके मुख्य तीन हेतु हैं। एक तो हमारे दुःख शासनकर्त्ताओंके सामने, गोरोंके सामने, इंग्लैंड में, दक्षिण आफ्रिकामें और भारतमें जाहिर करना। दूसरा यह कि हममें जो भी दोष हों उन्हें बताना और उन्हें दूर करनेके लिए लोगोंसे कहना। तीसरा, और कहें तो सबसे बड़ा, उद्देश्य हिन्दू-मुसलमानोंके बीचका भेद तोड़ना और साथ ही गुजराती, तमिल, कलकत्तेवाले जैसी खाइयोंको पाटना। भारतमें राज्यकर्त्ताओंकी विचारधारा दूसरे प्रकारकी मालूम होती है। वहाँ यह नहीं दीखता कि वे हममें एकता पैदा होने देना चाहते हैं। दक्षिण आफ्रिकामें हम सब थोड़े-थोड़े हैं, हमपर एक-सी मुसीबतें हैं, कोई-कोई बन्धन भी यहाँ ढीले हो गये हैं, इसलिए हम एक-दिल होनेका प्रयोग यहाँ बहुत ही आसानीसे कर सकते हैं। इन विचारोंको प्रजामें दृढ़ करना भी इस पत्रका हेतु है। इस उद्देश्यको सफल करनेके लिए सभी समझदार भारतीयोंकी मददकी आवश्यकता है। मतलब यह कि यदि इस पत्रको आवश्यक प्रोत्साहन मिले तो मैं देखता हूँ कि इससे बहुत-से काम हो सकते हैं। मुझे लगता है कि सभी पढ़े-लिखे और सामर्थ्यवाले लोगोंको ग्राहक बनना चाहिए। दक्षिण आफ्रिकामें कमसे कम २०,००० गुजराती हैं। उनमें से यदि २५ प्रतिशत ग्राहक बन जायें तो कोई अनोखी बात न होगी। पढ़े-लिखे लोग स्वयं ग्राहक बन जायें, इतना ही काफी नहीं है; उन्हें पत्रके उद्देश्योंको सफल बनानेके लिए पूरी कमर कसनी चाहिए। वे दूसरोंको समझा सकते हैं। पत्र शिक्षाका बड़ा साधन है। यह समझना बहुत जरूरी है कि यह अखबार मेरा नहीं, बल्कि हरएक भारतीय भाईका है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-४-१९०६
 

३०८. मुस्लिम युवक मण्डलसे

कांग्रेस हॉलमें श्री पीरन मुहम्मदकी अध्यक्षतामें डर्बनके मुस्लिम युवक मण्डल (यंग मैन्स मोहम्मडन असोसिएशन) की बैठक हुई थी। उसमें श्री एम° सी° आंगलियाने मण्डलके सम्बन्धमें कुछ सुझाव दिये थे और उनपर गांधीजीकी राय माँगी थी। साथ ही यह कहा था कि मण्डलके लिए विधान बनानेका काम गांधीजीको सौंपा जाये। इस प्रसंगपर बोलते हुए गांधीजीने कहा :

 

अप्रैल २४, १९०६

इस मण्डलका उद्देश्य यदि शिक्षा प्रचार, नीति-प्रचार और आन्तरिक सुधार करना हो तब तो इसका मुस्लिम युवक मण्डल नाम ठीक है। ईसाई युवक मण्डल (यंग मैन्स क्रिश्चियन असोसिएशन) जगत प्रसिद्ध है। उसे बहुतेरे समझदार लोगोंकी ओरसे प्रोत्साहन मिलता है। यह मण्डल भी वैसा ही काम कर सकता है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-४-१९०६.