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श्री ब्रोड्रिक और ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय

बाद । साम्राज्य-सरकार ट्रान्सवालको दबा रही है, यह हम जानते हैं और उसकी सराहना भी करते हैं। परन्तु हमें इसमें सन्देह है कि यह दबाव, परिस्थितिकी गम्भीरताके अनुसार, पर्याप्त है। माननीय मन्त्रीकी तीसरी बातसे अनेक सन्देह उत्पन्न होते हैं। उससे उनकी असहाय अवस्थाका पता चलता है। ट्रान्सवाल अभीतक स्वशासित उपनिवेश नहीं बना'; परन्तु छिपे हुए अर्थसे, श्री ब्रॉड्रिकने उक्त बात वैसा ही मानकर कही है। श्री ब्रॉड्रिकने उन वादोंसे इनकार नहीं किया जिनकी चर्चा सर संचरजीने की थी। और न इस बातसे इनकार किया जा सकता है कि जब ये वादे किये गये थे तब जिम्मेदार मन्त्री भलीभांति जानते थे कि आगे क्या होनेवाला है। वे जानते थे कि युद्धका एकमात्र परिणाम क्या होगा और शान्तिको घोषणाके पश्चात् ट्रान्सवालको स्वशासन देना पड़ेगा। इसलिए इसका मतलब यह निकला कि ट्रान्सवालके यूरोपीयोंको खुश करनेकी उत्सुकतामें, अब ब्रिटिश सरकार अपने वादोंसे मुकर जानेके लिए भी तैयार हो गई है। यहाँ यह प्रश्न करना सर्वथा संगत होगा कि युद्ध समाप्त होते ही, भारतीयोंके साथ किये गये वादे तुरन्त पूरे क्यों नहीं किये गये। और अब भी, सर विलियम वेडरबर्नके सुझावके अनुसार, ट्रान्सवालको वास्तविक स्वशासन मिलनेसे पहले ही, ब्रिटिश सरकार ब्रिटिश भारतीयोंपर से पुरानी पाबन्दियाँ क्यों नहीं हटा देती? वह ऐसा करके इस कानूनको उलट देनेकी बदनामी और वैसा करनेकी आवश्यकता सिद्ध करनेका बोझ, उस परिषदके सिरपर क्यों नहीं डाल देती जो पूर्ण स्वशासन मिल जानेपर चुनी जायेगी?

जिस समय श्री ब्रॉड्रिकने उपर्युक्त बातें कहीं थीं उसी समय उन्होंने, एक अन्य स्थानपर, परन्तु भारत-मन्त्रीकी हैसियतसे ही, अपने श्रोताओंको बताया था कि उनपर, ब्रिटेनके बाद, पहला दावा भारतका ही है, क्योंकि भारतके साथ ब्रिटेनका व्यापार उसकी अपेक्षा ज्यादा है जितना कैनेडा, आस्ट्रेलिया और दक्षिण आफ्रिकाके साथ मिलकर होता है । यदि युद्धकी समाप्ति- पर ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंके हितोंपर इसी भावनासे विचार किया जाता तो लॉर्ड मिलनर' ट्रान्सवालके भारतीय-विरोधी कानूनोपर भी ठीक उसी प्रकार बिना झिझके कलम फेर देते जिस प्रकार उन्होंने ब्रिटिश सिद्धान्तोंसे असंगत अन्य बीसियों अध्यादेशोंपर फेरी है। यह मामला ऐसा नहीं कि इधर उनका ध्यान ही न गया हो, क्योंकि देशमें आवागमन आरम्भ होते ही भार- तीयोंने लॉर्ड मिलनरसे भारतीय-विरोधी कानून रद कर देनेकी प्रार्थना की थी। यदि वे यह कदम उठाते तो आज जो भारत-विरोधी आन्दोलन चल रहा है वह शायद सुनाई भी न देता। और हमारी सम्मतिमें श्री बॉड्रिककी कल्पनापर अमल भी किया जा सकता है । अभी कोई बहुत देर नहीं हुई है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १-७-१९०५


१. स्वशासन १९०६ में मिला ।
२.भारतीय नागरिक सेवाके विशिष्ट सदस्य; इनका पीछे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेससे सम्बन्ध रहा । देखिए खण्ड १, पृष्ठ ३९६ ।
३.सर अल्मेड मिलनर, दक्षिण आफ्रिकाके उच्चायुक्त, १८९७-१९०५, केप उपनिवेशके गवर्नर, १८९७-१९०१ तथा ट्रान्सवालके १९०१-५ ।