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नेटालका विद्रोह

करना है तो सरकार, जैसी विज्ञप्तिपर हम यहाँ विचार कर रहे हैं वैसी विज्ञप्तियाँ निकालकर उनके विवेकपर प्रतिबन्ध कैसे लगा सकती है? परवाना अधिनियम के अन्तर्गत स्थिति अधिकाधिक असह्य होती जा रही है और यदि इंग्लैंडकी सरकार राहत नहीं देती तो नेटालके ब्रिटिश भारतीयोंको अपना कारोबार कभी-न-कभी पूर्ण रूपसे बन्द करना ही पड़ेगा।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १४-४-१९०६
 

२९७. नेटालका विद्रोह

जिन बारह वतनियोंको मृत्यु दंड[१] दिया गया था, उन्हें गोली से उड़ा दिया गया। नेटालकी जनता खुश हुई। श्री स्मिथका नाम रह गया। और बड़ी सरकारको नीचा देखना पड़ा। इस सम्बन्धमें श्री चर्चिलने जो भाषण दिया, वह बहुत अच्छा था। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया है कि बड़ी सरकारको नेटालसे खुलासा माँगनेका अधिकार है। क्योंकि अगर वतनी ठीक काबू में न रहें, तो बड़ी सरकारके लिए फौज भेजना कर्त्तव्य है। उसके बाद श्री स्मिथके इस्तीफे आदिकी जो घटनाएँ हुई हैं उनका कारण केवल श्री चेम्बरलेनके हिमायतियोंके भाषण और उनके दल द्वारा दक्षिण आफ्रिकाके सभी समाचारपत्रोंका नियन्त्रण है। श्री चचिलने कहा है कि जैसा काम श्री स्मिथने किया है, यदि वैसा करनेका रिवाज चल पड़े तो इंग्लैंड और उपनिवेशोंके बीच स्नेह कभी निभ नहीं सकता।

जिस समय श्री चर्चिल इस प्रकार भाषण कर रहे थे, उस समय नेटालमें इस खेदजनक कहानीका तीसरा प्रकरण रचा जा रहा था। बारह वतनियोंको मारा गया फिर भी विद्रोह शान्त होनेके बदले अधिक भड़क उठा। काफिरोंके राजा बम्बाटाको पदच्युत करके उसके स्थानपर दूसरेको बैठाया गया, क्योंकि बम्बाटाका व्यवहार अच्छा न था। बम्बाटाने मौका पाकर नये राजाका अपहरण किया और विद्रोह शुरू कर दिया। यह उपद्रव ग्रे टाउनमें चल रहा है। जिस प्रदेशमें बम्बाटा लूटमारके लिए निकला है वह घनी झाड़ियोंवाला विकट प्रदेश है । उसमें वतनी लम्बे समय तक छिपकर रह सकते हैं। उन्हें खोज निकालना और लड़ाई करना मुश्किल है।

जिस एक टुकड़ीने बम्बाटाका पीछा किया उसमें बारह काफिरोंको गोलीसे उड़ानेवाले अंग्रेज भी थे। बम्बाटाने इस टुकड़ीको घेर लिया। टुकड़ीके लोग बड़ी बहादुरीसे लड़े, लेकिन आखिर वे हारे और बड़ी मुश्किलसे निकल पाये। उनमें से कुछ मारे गये। मरनेवालोंमें बारह काफिरोंको गोली मारनेवाले भी थे। ईश्वरकी ऐसी ही लीला है। जो मारनेवाले थे, उन्हें दो दिन के अन्दर मौतके मुँहमें जाना पड़ा।

जिस समय यह लिखा जा रहा है, बम्बाटा आजाद है। उसके साथी-संगी भी बढ़ते जा रहे हैं। इसका परिणाम क्या होगा, कुछ समझमें नहीं आ रहा है।

उपनिवेशके ऐसे संकटके समय में हमारा कर्त्तव्य क्या है? वतनियोंका विद्रोह सच्चा है या नहीं, इसका विचार हमें नहीं करना है। हम ब्रिटिश शक्तिके कारण नेटालमें बसे हुए हैं। हमारा अस्तित्व ही उसपर निर्भर है। अतएव यथासम्भव मदद करना हमारा कर्त्तव्य है।

 
  1. देखिए "नेटालमें राजनीतिक उपद्रव", पृष्ठ २७६-७।