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नेटालमें राजनीतिक उपद्रव


इस सारी बातके प्रकट होते ही समूचे दक्षिण आफ्रिकामें एक शोर मच गया। समाचारपत्रोंने कड़े लेख लिखे कि लॉर्ड एलगिनके हस्तक्षेपके कारण स्वराज्यके संविधानको आघात पहुँचा है। अगर नेटालको स्वतन्त्र सत्ता प्राप्त है, तो फिर नेटालके राजकाज में बड़ी सरकार दखल नहीं दे सकती। नेटालके राज्यकर्त्ताओंके त्यागपत्रपर उन्हें सब ओरसे शाबाशी दी गई। चारों तरफ सभाएँ हुईं, और बड़ी सरकारके विरुद्ध भाषण हुए।

साम्राज्य-सरकारकी मान्यता यह थी कि विद्रोहको समाप्त करनेमें उसने नेटालकी मदद की थी। इसलिए वतनियोंको न्याय मिलता है या नहीं, इसे देखनेका काम उसीका था। अतः सजा मुल्तवी करनेके लिए लिखनेमें कोई गलती नहीं हुई। लेकिन दक्षिण आफ्रिकाको उत्तेजित देखकर बड़ी सरकारकी सारी दलीलें सो गईं और लॉर्ड एलगिन दब गये।

उन्होंने गवर्नरको लिखा है कि जाँच करनेसे पता चला है कि वतनियोंको उचित न्याय मिला है। अब सरकार नेटालके राज्यकर्ताओंके काममें दखल देना नहीं चाहती। वे जो ठीक समझें सो करें। लॉर्ड एलगिनने गवर्नरको दोषी ठहराया है। उन्होंने कहा है कि अगर गवर्नरने शुरू में ही पूरी हकीकत भेज दी होती, तो इस प्रकार हस्तक्षेप करनेकी नौवत न आती। दो प्राणियोंके लिए बारह प्राण गये हैं। बारह वतनियोंको सोमवारके दिन तोपसे उड़ा दिया गया है।

इस उपद्रवमें केवल एक ही व्यक्तिने अपना दिमाग ठंडा रखा है, और वे हैं श्री मोरकम। श्री मोरकमने मैरित्सबर्गकी सभामें कहा था कि लॉर्ड एलगिनने सही कदम उठाया था। प्राण बचाने की बात थी। इसपर राज्यकर्ताओंको त्यागपत्र देनेकी कोई जरूरत न थी। फौजी कानून के जारी होनेसे पहले हंट और आर्मस्ट्रांग मारे जा चुके थे। अतएव वतनियोंकी जाँच सर्वोच्च न्यायालयके सम्मुख होनी चाहिए थी। सारी सभा श्री मोरकमके विरुद्ध थी। लोग चिल्ल-पों मचा रहे थे, पर बहादुर श्री मोरकमको जो कुछ कहना था, वह उन्होंने कहा ही।

इस सबका परिणाम क्या होगा? काफिर मारे गये, यह बात भुला दी जायेगी। उन्हें न्याय मिला है या नहीं, यह नहीं कहा जा सकता। लेकिन जहाँ-जहाँ स्वराज्य दिया गया है, वहाँ-वहाँ लोगोंके दिमाग और अधिक चढ़ जायेंगे। वे अधिक मनमानी करेंगे और अब साम्राज्य सरकार दखल देते हुए डरेगी। कहावत है कि साँपका इसा रस्सीसे डरता है, इसलिए साम्राज्य सरकार अब शायद ही कभी हस्तक्षेप करे। इसमें नुकसान काले लोगोंका ही है। उन्हें मताधिकार नहीं है। जहाँ मताधिकार है वहाँ वे उसका पूरा उपयोग नहीं कर पाते। इस कारण उपनिवेशी उनपर अधिक प्रतिबन्ध लगायेंगे और जो उपनिवेशियोंको खुश रखकर न्याय पाना चाहेंगे, वे ही पा सकेंगे। आनेवाले वर्षोंमें दक्षिण आफ्रिकामें बहुत उथल-पुथल होने को है। भारतीयों और दूसरे काले लोगोंको बहुत सोचना और सोच-समझकर चलना है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ७-४-१९०६