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शरण-स्थल


उस चीनीकी तरफसे श्री स्मट्सने बहस की, और न्यायमूर्ति मेसनने फैसला देते हुए अधीक्षककी कार्रवाईकी तीव्र भर्त्सना की। उन्होंने कहा,

तत्वतः और वस्तुतः इस मुकदमेकी एक अत्यन्त गम्भीर बात यह है कि विदेशी श्रम विभागके अधीक्षकने चीनी सिपाहीसे किसीको नहीं मिलने दिया और इस प्रकार अपनी सत्ताका अत्याचारपूर्ण प्रयोग किया। मैं इसे निस्सन्देह एक बहुत ही गम्भीर बात मानता हूँ। मेरे खयालसे इस प्रकार किसी भी व्यक्तिके गैरकानूनी ढंगसे हटाये जाने और उसके साथ गैरकानूनी व्यवहारको रोकनेका एकमात्र उपाय प्रत्येक व्यक्तिके इस अधिकारको मान्य करना है कि उसका जो भी मित्र उससे मिलना चाहे वह उससे मिल सके। . . . अधीक्षकके कार्यका परिणाम इस प्रकारकी किसी भी कार्रवाईको विफल करनेवाला था और उसने कुलीको, उस सूचनाके बावजूद जो कुलीके वकीलोंने उसको दी थी, उपनिवेशके बाहर भेज कर अनुचित काम किया।

विद्वान न्यायाधीशने अधीक्षकको आदेश दिया है कि वह उस चीनीको हाजिर करे और यह बताये कि जब चीनीकी रक्षाके लिए अदालतके सामने आवेदनपत्र दिये जानेकी बात उसको मालूम थी, तब वह उक्त चीनीको उपनिवेशसे निर्वासित करके अदालतकी मान-हानि करने के अपराधमें दण्डित क्यों न किया जाये? न्यायाधीशने यह भी आदेश किया है कि मुवक्किलने वकीलके सम्बन्धमें दरखास्तपर जो खर्च किया है वह सब श्री जेमिसन[१] देंगे। उन्होंने यह भी कहा कि "यह आदेश, जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूँ, मैंने इसलिए दिया है कि अधीक्षकने किसी भी आदमीको आवेदक तक न पहुँचने देनेमें अपनी शक्तिका अन्यायपूर्ण प्रयोग किया है।"

यहाँ एक तरफ एक अधिकारी है — बहुत प्रभावशाली पदपर आसीन दूसरी तरफ पुलिसका एक गरीब सिपाही है। फिर भी सिपाही ट्रान्सवालमें सर्वोच्च न्यायाधिकरणके सामने अपनी फरियादकी सुनवाई करनेके अपने अधिकारका उपयोग कर सका है। खुद अधीक्षकको ऐसी संस्थापर गर्व होना चाहिए जो सम्राट्के छोटेसे-छोटे प्रजाजनके स्वातन्त्र्यकी इस प्रकार रक्षा करती है; क्योंकि यह बात सहज ही कल्पनामें आ सकती है कि उसने उस चीनीके साथ जो कुछ किया, वही उसके साथ उससे बड़े अधिकारियों द्वारा किया जा सकता है। सम्भव है यह श्री जेमिसनकी समझकी भूल हो परन्तु प्रजाके स्वातन्त्र्याधिकारकी रक्षा न हो, इसके बजाय यह ज्यादा अच्छा है कि उन्हें स्वयं हानि उठानी पड़े।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ७-४-१९०६
 
  1. अधीक्षक, विदेशी श्रम-विभाग।