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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्टार' या 'साप्ताहिक लीडर' या 'साप्ताहिक रैंड डेली मेल' आये तो श्री आइजकके पास भिजवाना।

मोहनदासके आशीर्वाद

श्री छगनलाल खुशालचन्द गांधी

मारफत'इंडियन ओपिनियन'

फीनिक्स

मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (एस° एन° ४३४७) से।

 

२८३. शरण स्थल

दक्षिण आफ्रिका जिस उथल-पुथलमें से गुजर रहा है, उसमें विभिन्न उपनिवेशोंके न्यायालय प्रमुख सुरक्षा स्थलोंका काम कर रहे हैं। हम एक भारतीयके मुकदमे में न्यायमूर्ति वेसेल्सका फैसला छाप चुके हैं।[१] इस अंकमें हम एक चीनीके मुकदमे में न्यायमूर्ति मेसनका फैसला 'ट्रान्सवाल लीडर' से उद्धृत करते हैं। चूँकि ट्रान्सवाल इस समय बहुत ही अत्याचारपूर्ण कानूनोंसे पीड़ित है, इसलिए इस उपनिवेशमें न्यायाधीशोंको अपनी परम्परागत स्वतन्त्रताका प्रयोग करने और प्रजाकी स्वाधीनताकी रक्षा करनेकी आवश्यकता है।

विदेशी श्रम-विभागमें पुलिसका एक चीनी सिपाही तकलीफदेह साबित हुआ है। इसलिए, ऐसा जान पड़ता है, वह विदेशी श्रम विभागके अधीक्षककी आज्ञासे वारंटके बिना गिरफ्तार कर लिया गया। उसको हथकड़ियाँ पहनाई गई और एक काल-कोठरीमें बन्द कर दिया गया। फिर चीनी श्रम-अध्यादेशकी एक धाराके अन्तर्गत उसको उसके देश वापस भेजनेका हुक्म जारी कर दिया गया। डर्बन भेजे जानेसे पूर्व उस अभागे सिपाहीको कानूनी सहायता लेने अथवा अपने मित्रोंसे भेंट करनेकी अनुमति नहीं दी गई। अगर वह छुपे तौरपर और अधीक्षकके पीठ पीछे वकालत-नामेपर हस्ताक्षर न कर देता तो उसको शायद राहत न मिलती और वह अपने मामलेकी सुनवाईके बिना ही चीन चला गया होता। सिपाही खतरनाक आदमी था या नहीं, यह अप्रासंगिक है। हम मामलेकी सत्यता और असत्यतापर भी विचार नहीं करते। हमने जो तथ्य ऊपर दिये हैं, वे स्वीकार किये जा चुके हैं।

विदेशी श्रम-विभागके अधीक्षकको सूचित कर दिया गया था कि अभियुक्त द्वारा नियुक्त वकील सर्वोच्च न्यायालय में बन्दी प्रत्यक्षीकरणकी आज्ञा निकालनेकी दरखास्त देंगे। तिसपर भी न्यायालयका आदेश निकलनेके पूर्व ही वह आदमी डर्बनको रवाना कर दिया गया। तथापि, अधीक्षकको सर्वोच्च न्यायालयमें स्वयं हाजिर होने तथा सिपाहीको भी हाजिर करनेका आदेश दिया गया। मुकदमेकी सुनवाई प्रिटोरियामें ३० मार्चको न्यायमूर्ति मेसनके समक्ष हुई। उस अवसरपर अधीक्षकने यह कहकर आवेदनपत्रको विफल करनेकी पुनः चेष्टा की कि चीनी श्रम-अध्यादेशके अनुसार परवानेके बिना इस देशमें, किसी भी चीनीका प्रवेश निषिद्ध है और चूंकि अब ऐसे परवाने बन्द कर दिये गये हैं, इसलिए उसके लिए सिपाहीको पेश कर सकना बिलकुल असम्भव है।

 
  1. देखिए "न्यायका दुर्ग", पृ४२५९-६०।