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२८१. पत्र : 'लीडरको'[१]
भारतीय कब भारतीय नहीं होता?

[जोहानिसबर्ग

अप्रैल ७, १९०६ के पूर्व]

सेवामें

सम्पादक
'लीडर'

जोहानिसबर्ग
महोदय,]

कुछ दिन पहले जापानी प्रजाजन श्री नोमूरासे आपने सार्वजनिक रूपसे माफी माँगी थी, क्योंकि मुख्य अनुमतिपत्र-सचिवने उक्त सज्जनको अस्थायी अनुमतिपत्र देनेसे इनकार कर दिया था। क्या मैं एक ब्रिटिश प्रजाके लिए आपकी सहानुभूति प्राप्त कर सकता हूँ? मुझे मालूम हुआ था कि श्री सुलेमान मंगा[२] एक ब्रिटिश भारतीय हैं। वे वैरिस्टरीका अध्ययन कर रहे हैं। डेलागोआ बेमें बसनेवाले अपने रिश्तेदारोंसे मिलनेके लिए इंग्लैंडसे आये थे। मुझसे उनके लिए अनुमतिपत्रकी अर्जी देनेके लिए कहा गया था, जिससे डर्बनसे डेलागोआ-बे जाते हुए वे ट्रान्सवालसे गुजर सकें। सरकारने अनुमतिपत्र देनेसे इनकार कर दिया और अपने निर्णयका कोई कारण बतानेसे भी वह अबतक इनकार ही करती गई है। श्री नोमूराका प्रतिनिधित्व करनेका श्रेय भी मुझे मिला था। उनका दर्जा निश्चय ऊँचा था; परन्तु सम्भवतः श्री मंगाका दर्जा ज्यादा ऊँचा है। वे डेलागोआ बेके एक बहुत ही प्रसिद्ध भारतीय व्यापारीके पुत्र हैं और स्वयं मिडिल टेम्पलके एक सदस्य हैं। फिर भी, ब्रिटिश भारतीयके रूपमें वे ट्रान्सवालसे गुजर नहीं सके।

अब मुझे मालूम हुआ है कि श्री मंगाको ब्रिटिश भारतीय समझने में मैंने भूल की थी। समुद्रकी राह डेलागोआ-बे पहुँचकर उन्होंने सरकार द्वारा अनुमतिपत्र पानेके लिए दूसरा निष्फल प्रयत्न किया; सरकार अपना निर्णय बदलनेको तैयार न हुई। वे पुर्तगाली भारतमें पैदा हुए थे, इसलिए उन्होंने पुर्तगाली नागरिकके अधिकारोंका दावा किया। इस हैसियतसे उन्होंने डेला-गोआ बेकी सरकारके सचिवको लिखा, और उक्त सचिवके हस्तक्षेपसे ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेका अस्थायी अनुमतिपत्र उन्हें मिल गया है। पोर्तुगाली प्रजा श्री मंगाकी विजय हो गई है; ब्रिटिश प्रजा श्री मंगा अपमानित किये गये हैं। ऐसा है वह पुरस्कार जो अपने असाधारण धैर्य और सहनशीलताके लिए ब्रिटिश भारतीय समाजको सरकारकी ओरसे मिला करता है।

[आपका, आदि,
मो° क° गांधी]

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १४-४-१९०६
 
  1. बिना तिथिका यह पत्र "निरर्थक भेद-भाव" (डिस्टिंक्शन विदाउट डिफरेंस) शीर्षकसे लीडरके ७ अप्रैलके अंक में प्रकाशित हुआ था।
  2. देखिए "ट्रान्सवाल अनुमतिपत्र अध्यादेश", पृष्ठ २८८-९ और "पत्र: विलियम वेडरबर्नको", पृष्ठ २८३-६।