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२८०. पत्र : उपनिवेश-सचिवको

डर्बन

[अप्रैल ७, १९०६ के पूर्व]

सेवामें

माननीय उपनिवेश सचिव

पीटरमैरित्सबर्ग
महोदय,

हमें आपके गत मासकी २४ तारीखके पत्रकी प्राप्ति सूचना देनेका मान प्राप्त हुआ है। पत्रमें[१] आपने उस विषयपर, जिसकी हमने अपने पिछले मासकी १० तारीखके पत्र में चर्चा की थी, विस्तारसे लिखा है। इसके लिए हमारी कांग्रेसकी समिति आपकी आभारी है।

हमारी समिति खुले तौरपर स्वीकार करती है कि उन पासों और प्रमाणपत्रोंका, जिनकी चर्चा हमारे पत्र में की गई है, उद्देश्य इस तरहके पास रखनेवाले लोगोंके गमनागमनको सुविधा-जनक बनाना है।

हमारी समितिका निवेदन है कि ऐसे पास उन लोगोंके सन्तोषके लिए दिये जाते हैं, जो अधिनियम लागू करनेके पक्षमें हैं।

हमारी समितिका दावा है कि यद्यपि अधिनियमसे प्रभावित कुछ लोगोंका आव्रजन वर्जित है, तथापि उनका उपनिवेशसे होकर गुजरना, निकलना या यहाँ अस्थायी रूपमें रहना वर्जित नहीं है। यद्यपि वे लोग, जो उपनिवेशमें रहनेके अधिकारी हैं, अधिवासी प्रमाणपत्र आदि लेनेके लिए बाध्य नहीं हैं, फिर भी जिस सख्ती से अधिनियम लागू किया जा रहा है उससे भारतीयोंके लिए प्रमाणपत्र रखना नितान्त आवश्यक हो गया है।

हमारी समिति यह जानती है कि ज्यादातर ट्रान्सवालके भारतीय ही अभ्यागत पास लेते हैं। यह स्वाभाविक है, क्योंकि दोनों उपनिवेशोंमें परस्पर काफी व्यापार होता है।

हमारी समितिकी नम्र राय है कि अभ्यागत-पास देकर ट्रान्सवालके भारतीयोंको हर तरहकी सुविधा देनी चाहिए। अभ्यागत और नौकारोहण — दोनों किस्मके पास जिनपर इतना शुल्क लगा दिया गया है कि वह दिया ही न जा सके, रेलवेके लिए अधिक राजस्व प्राप्त करने के साधन हैं। स्वर्गीय श्री एस्कम्बके प्रशासन-कालमें जब इसी प्रकारके शुल्क लगाये गये थे, यह सारा सवाल उठाया गया था, और हमारी समितिके निवेदन करनेपर, उन्हें तत्काल वापस ले लिया गया था।

हमारी समिति महसूस करती है कि पत्नियोंके पासों तथा नौकारोहण एवं अभ्यागत पासोंके लिए शुल्क लेना एक अत्यन्त गम्भीर बात है। इसलिए वह इसपर पुनर्विचार करनेकी प्रार्थना करती है।

आपके आज्ञाकारी सेवक,

ओ° एच° आमद जौहरी

एम° सी° आंगलिया

अवैतनिक संयुक्त मन्त्री, नेटाल भारतीय कांग्रेस

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ७-४-१९०६
 
  1. देखिए "पत्र: उपनिवेश-सचिवको", पृष्ठ २२९-३०।