पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/२९८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२६४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

शैक्षणिक परीक्षाके लिए मान्यता देने और जो लोग उपनिवेशमें बस चुके हैं उनके हितके लिए घरेलू नौकरों तथा दूसरोंके प्रवेशकी उचित व्यवस्था करनेके लिए कहेगी। लेकिन कानून में ऐसा कोई सुधार करनेके बजाय इस विधेयकसे ब्रिटिश भारतीयोंकी स्वतंत्रतापर और भी अधिक प्रतिबन्ध लगेगा, ऐसा खयाल है। यह कहनेसे कि यह सभीपर एक-सा लागू है, भारतीयोंपर से इसका घातक प्रभाव चला नहीं जाता। यह मुख्यतः उन्हींके लिए बनाया गया है। वर्तमान कानूनमें प्रवासीकी कोई परिभाषा नहीं है। इसलिए उसमें यह सामान्य कानूनी परिभाषा लागू होती है कि प्रवासी वह है जो यहाँ बसनेकी नीयतसे प्रवेश करता है। इससे निष्कर्ष यह निकलता है कि कानूनमें मन्त्रीको पूरा अधिकार है कि वह यात्रियोंको अभ्यागत पास दे दे, और जो भारतीय या दूसरे लोग अस्थायी रूपसे, उपनिवेशमें आना चाहें उनको परेशान किये बिना प्रवेश करने दे। विधेयकमें यह सब बदल दिया गया है, और प्रवासीकी परिभाषा इस प्रकार की गई है — "कोई भी व्यक्ति जो इस उपनिवेशमें खुश्की या समुद्रकी राह बाहरसे आकर प्रवेश करता है अथवा प्रवेश करनेकी माँग करता है।" हमारी समझसे ऐसी परिभाषामें, जो बिलकुल अस्वाभाविक है, उन यात्रियोंके लिए, जो उपनिवेशसे गुजरना या इसमें अस्थायी रूपसे रहना चाहते हों, व्यवस्थाकी कोई गुंजाइश न रह जायेगी। इससे एक दूसरा भी बहुत बड़ा अन्तर होता है। जब कि १९०२ का कानून दक्षिण आफ्रिकामें स्थायी रूपसे आबाद लोगोंपर लागू नहीं होता, इस विधेयक में सिर्फ उन लोगोंको छूट है, "जो मन्त्रीको सन्तोष दिला दें कि वे उपनिवेशमें स्थायी रूपसे बस गये हैं और पूर्ववर्ती धाराकी क, ङ और च उपधाराओं के अन्तर्गत नहीं आते।" इसलिए प्रतिबन्ध और कठोर हो गये हैं और उनसे इस उपनिवेशमें ब्रिटिश भारतीयोंके प्रवेशके मार्ग में अनन्त बाधाएँ आती हैं। 'अधिवास' का प्रश्न सर्वोच्च न्यायालयकी व्याख्यापर छोड़ने के बजाय अब मन्त्री के हाथमें छोड़ दिया जायेगा। अभी कुछ ही दिन पहले हमने एक ऐसे मामलेपर टीका की थी कि जो केपमें हुआ था और जिसके सर्वोच्च न्यायालय में ले जा पानेके कारण एक भारतीय दक्षिण आफ्रिकामें अपना अधिवासका दावा सिद्ध कर सका था। अगर वह बेचारा मन्त्रीकी दयापर छोड़ दिया गया होता तो उसको बहुत मुसीबतें झेलनी पड़तीं। फिर इसमें 'अधिवास' सिर्फ केप उपनिवेश तक सीमित है। इसलिए जो भारतीय अब भी ट्रान्सवाल या नेटालमें हैं, वे इस उपनिवेश में प्रवेश नहीं कर सकेंगे। हम विश्वास करते हैं कि केप टाउनकी ब्रिटिश भारतीय समिति इस मामले को अपने हाथमें लेगी और लोगोंको उचित राहत दिलानेका प्रयत्न करेगी।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३१-३-१९०६